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भारत में 10 करोड़ लोग मोटापे का शिकार, बढ़ा डायबिटीज, हाइपरटेंशन और दिल की बीमारी का खतरा… क्या सस्ता होगा इलाज? जानें

भारत में 10 करोड़ लोग मोटापे का शिकार, बढ़ा डायबिटीज, हाइपरटेंशन और दिल की बीमारी का खतरा… क्या सस्ता होगा इलाज? जानें दुनिया की महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ रहे भारत में करीब आधे वयस्क लोग ऐसे हैं जो शारीरिक श्रम जरूरत से कम करते हैं. इसका कारण है बदलती जीवन शैली और ऊपर से खान-पान की बदलती आदतें. इसका नतीजा ये है कि भारत में करीब 10 करोड़ लोगों को मोटापे की बीमारी ने घेर लिया है. यही हाल रहा तो एक रिसर्च के मुताबिक 2050 तक भारत में करीब 44 करोड़ लोग मोटापे की बीमारी से घिर चुके होंगे. मोटापा आता है तो अपने साथ हर तरह की बीमारी ले आता है, चाहे वो डायबिटीज हो, हाइपरटेंशन या फिर दिल की बीमारी. यहां तक कि कई तरह के कैंसर का खतरा भी इसकी वजह से बढ़ जाता है. यही वजह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी लोगों से मोटापे से बचने के लिए व्यायाम करने या खाद्य तेल का इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं. प्रधानमंत्री मोदी खुद भी फिटनेस को लेकर काफी जागरूक हैं. योग और संयमित खानपान उनकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा है. फिटनेस को लेकर उनकी जागरूकता ही है कि वो फिटनेस चैलेंज लेने में भी पीछे नहीं हटते और फिटनेस चैलेंज देने में भी. देश की जनता को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का ये भी बहुत कारगर जरिया हो सकता है लेकिन बदलती जीवनशैली के प्रभाव और मोबाइल फोन की कैद में आ चुके भारत के करोड़ों लोग अब भी मोटापे के इस संकट का अहसास नहीं कर पा रहे हैं. इससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका तो योग, व्यायाम, सैर करना या संयमित खान-पान ही है लेकिन अगर मर्ज बढ़ ही जाए तो फिर दवा की जरूरत पड़ जाती है.लेकिन दवाएं एक कीमत के साथ आती हैं. लापरवाही के कारण स्वास्थ्य की कीमत चुकाने के बाद लोगों को दवाओं की भी कीमत चुकानी पड़ती है. इसी से निपटने के लिए सरकार ने एक कारगर मुहिम प्रधानमंत्री जन औषधि योजना की शुरुआत की है. इसके तहत ब्रैंडेड दवाओं के समकक्ष सस्ते दामों पर जेनेरिक दवाएं मुहैया कराई जाती हैं. डायबिटीज के मरीजों के लिए जरूरी जानकारीदरअसल, जल्द ही भारत में डायबिटीज की एक प्रभावी दवा Empagliflozin की कीमत 90% तक कम होने वाली है. भारत की कई दवा कंपनियां डायबिटीज की एक जेनेरिक दवा बनाने की तैयारी कर चुकी हैं. इसकी वजह ये है कि डायबिटीज की इस दवा का पेटेंट 10 मार्च को खत्म हो गया है. पेटेंट ख़त्म होने के बाद इस दवा को किसी और के द्वारा बनाने पर लगी पाबंदी की मीयाद खत्म हो जाएगी. ऐसे में टोरेंट, अल्केम, डॉ. रेड्डी और लुपिन जैसी कई भारतीय दवा कंपनियां डायबिटीज की इस दवा के संस्करण को जल्द ही बाजार में उतारने की योजना बना रही हैं. इससे डायबिटीज की इस दवा की 60 रुपये की एक टैबलेट की कीमत घटकर 9 से 14 रुपए के बीच रह जाने की संभावना है. इससे भारत में डायबिटीज की दवाओं के बाजार पर भी काफी असर पड़ेगा जो आज करीब 20 हजार करोड़ रुपये का है. इंटरनेशनल डायिबिटीज फेडरेशन के मुताबिक भारत में करीब 10 करोड़ से ज़्यादा लोग डायबिटीज के शिकार हैं और इस बीमारी की दवा में उनका काफी पैसा लगता है. डायबिटीज की नई दवा की कीमत घटने से उन्हें कुछ राहत जरूर मिलेगी. वैसे दवाओं की कीमतें घटाकर जनता को राहत देने की कोशिशें हर साल होती हैं. पिछले ही साल मई में सरकार ने डायबिटीज, दिल और लिवर की बीमारियों जैसी तकलीफों में इस्तेमाल होने वाली 41 दवाओं के दाम काफी घटा दिए थे. दवाओं की लागत पर भी काबू पाने की कोशिशें होती हैं. पिछले ही साल Department of Pharmaceuticals और National Pharmaceutical Pricing Authority ने 1 अप्रैल 2024 से 923 दवाओं की अधितकम कीमतें तय कर दी थीं. यानी उस कीमत से ज्यादा पर वो दवाएं नहीं बिक सकतीं.प्रधानमंत्री जन औषधि योजनादवाओं को किफायती बनाने और आम लोगों की जेब की पहुंच में लाने की दिशा में भारत सरकार की प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि योजना काफी लोकप्रिय है. ये योजना 2008 में रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा जन औषधि योजना के नाम से शुरू की गई थी. 2016 में इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना कर दिया गया. इसके तहत लोगों को ब्रैंडेड दवाओं के समकक्ष जेनेरिक दवाएं सस्ती कीमतों पर मुहैया कराई जाती हैं. इस सिलसिले में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 7 मार्च को जनऔषधि दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस स्कीम के तहत देश भर में जनऔषधि केंद्र खोले गए हैं, जहां किफायती दामों पर क्वॉलिटी जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. 2015 तक इस स्कीम को लेकर खास उत्साह नहीं था. तब तक चुने हुए राज्यों में महज 80 जनऔषधि  केंद्र ही खुले थे लेकिन 2016 के बाद से इसमें जबर्दस्त तेजी आई. 2016-17 में 1080 जनऔषधि केंद्र हुए और उसके बाद इसने इतनी तेजी पकड़ी कि इस साल मार्च तक 15 हजार से ज्यादा जनऔषधि केंद्र देश भर में खुल गए हैं. जहां से आप सस्ती कीमत पर जेनेरिक दवाएं ले सकते हैं.क्या हैं ये जेनेरिक दवाएंदेश में अब कम ही लोग होंगे जिन्हें जेनेरिक ड्रग्स के बारे में जानकारी नहीं होगी. भारत ही नहीं दुनिया के अधिकतर देशों में सरकारों के दखल से जेनेरिक दवाएं बिकती हैं ताकि लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध हो सकें. इसलिए जेनेरिक दवाओं को हम ब्रैंडेड दवाओं का किफायती संस्करण कह सकते हैं. जेनेरिक ड्रग्स को तब बाजार में उतारा जाता है जब मूल ड्रग निर्माता के पेटेंट की अवधि खत्म हो जाती है. जैसा हमने आपको ऊपर बताया कि डायबिटीज की एक प्रभावी ड्रग Empagliflozin का पेटेंट खत्म हो रहा है. इसके बाद इसकी जेनेरिक दवा बनाने का रास्ता खुल जाएगा. जेनेरिक दवाओं की पोटेंसी यानी प्रभावशीलता, गुणवत्ता और उनके असर में कोई कमी नहीं आती यानी ये बिलकुल उसी तरह शरीर पर असर करती हैं जैसे ब्रैंडेड दवाएं. इन जेनेरिक दवाओं को या तो उनके सॉल्ट के नाम से या फिर किसी अन्य ब्रैंड नेम से बेचा जाता है. भारत में दवाओं को बनाने का काम इतना आगे पहुंच चुका है कि आज भारत को दुनिया की फार्मेंसी कहा जाता है. कोविड महामारी के दौरान कोविड की वैक्सीन दुनिया के कई देशों में पहुंचाकर भारत ने इस पर बड़ी मुहर लगा दी थी. जीवन रक्षक दवाओं को किफायती लागत में तैयार करने के लिए भारत का फार्मा उद्योग दुनिया में अपनी बड़ी पहचान रखता है.दुनिया भर में जेनेरिक दवाओं का भारत सबसे बड़ा सप्लायर है… प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के मुताबिक दुनिया की 20% जेनेरिक दवाएं भारत से ही सप्लाई होती हैं.भारतीय फार्मा उद्योग 60 अलग अलग बीमारियों से जुड़े 60 हजार अलग अलग जेनेरिक ब्रैंड्स का उत्पादन करता है. भारत दुनिया के 200 देशों को दवाओं का निर्यात करता है.अफ्रीका महाद्वीप में जेनेरिक दवाओं की 50% जरूरत भारत से ही पूरी होती है. अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की 40% जरूरत भारत से पूरी होती है.ब्रिटेन में सभी दवाओं का करीब 25% भारत से सप्लाई होता है.इसके अलावा अगर वैक्सीन को भी देखें तो दुनिया की 60% वैक्सीन्स का उत्पादन भारत में होता है. WHO द्वारा सप्लाई की जाने वाली अलग अलग बीमारियों की वैक्सीन्स का अधिकतर हिस्सा भारत से ही पूरा होता है. भारत में क़रीब 3 हजार फार्मा कंपनियां हैं जिनकी 10 हजार 500 उत्पादन इकाइयां हैं. तो ये तो पूरे फार्मा उद्योग की तस्वीर है. लेकिन हम विशेष तौर पर बात कर रहे हैं जेनेरिक दवाओं की जिनकी जरूरत दिन पर दिन बढ़ती जा रही है और अब आम लोगों के लिए वो पहले से कहीं ज्यादा उपलब्ध हैं. भारत में जेनेरिक दवाओं के यहां तक पहुंचने की कहानीआजादी के समय भारत के दवा उद्योग पर मुख्यतौर पर विदेशी कंपनियों का प्रभुत्व था. तब भारत में दवाओं के 90 फीसदी बाजार पर अमेरिकी और यूरोपियन कंपनियों का नियंत्रण था. साठ के दशक में भारत सरकार ने फार्मा सेक्टर में स्वदेशी दवा कंपनियों को बढ़ावा देना शुरू किया लेकिन सत्तर के दशक तक लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया.सत्तर के दशक में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने एक कानून लागू किया जिसके तहत सरकार ने देश में मेडिकल प्रोडक्ट्स के पेटेंट यानी प्रोडक्ट पेटेंट पर रोक लगा दी. पेटेंट एक्ट 1970 से ये हुआ कि मेडिकल प्रोडक्ट्स के बजाय प्रोसेस यानी दवा बनाने की प्रक्रिया को ही पेटेंट की इजाजत दी गई. यानी दवा पर पेटेंट हट गया, उसके निर्माण के प्रोसेस पर पेटेंट बना रहा. इससे भारतीय दवा उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव आ गया. इसके बाद भारतीय दवा कंपनियों को देश में ही किसी अन्य कंपनी की ब्रैंडेड दवाओं जैसी दवाओं को बनाने का अधिकार मिल गया बशर्ते उन दवाओं को बनाने की प्रक्रिया दूसरी हो. यानी पेटेंट प्रोसेस पर बना रहा, प्रोडक्ट पर हट गया. इसके बाद भारतीय कंपनियों ने दवा का अध्ययन कर उसे तैयार करने की अपनी प्रक्रिया तैयार की. उनके निर्माण में इस्तेमाल सामग्री को पहचाना और फिर मूल प्रक्रिया में बदलाव कर उसी दवा को काफी कम लागत में तैयार किया. और प्रोसेस पेटेंट का भी उल्लंघन नहीं किया. इसके बाद भारतीय फार्मा सेक्टर तेजी से बढ़ा. सत्तर से अस्सी के दशक के बीच भारतीय फार्मा सेक्टर में कंपनियां दोगुनी हो गईं. इसके साथ ही भारतीय दवा कंपनियों ने अपनी रिसर्च भी तेज कर दी इसका नतीजा ये हुआ कि किसी दवा के दुनिया के बाजार में आने के बाद बहुत ही कम समय में भारत में भी वैसी ही दवा बनने लगी लेकिन अलग प्रक्रिया के ज़रिए. इससे पहले इस काम में काफी समय लगता था. कई रिपोर्ट्स के मुताबिक 2006 तक भारतीय फार्मा कंपनियां देश में ड्रग्स की जरूरत का 95 फीसदी खुद ही तैयार करने लगीं लेकिन इस पूरे काम में भी कुछ कमियां रह गईं. भारतीय कंपनियों को अपने उत्पादों पर मार्जिन कम मिलता था जिसकी वजह से उनके पास अनुसंधान और विकास यानी रिसर्च एंड डेवल्पमेंट के लिए ज्यादा पैसा नहीं बच रहा था. ये 1995 में भारत द्वारा एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से बदल गया.  1995 का TRIPS समझौता1 जनवरी 1995 से भारत दुनिया में TRIPS समझौते का हिस्सा बन गया. TRIPS यानी Trade-Related Aspects Of Intellectual Property Rights.TRIPS के तहत वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गैनाइजेशन के सभी सदस्य देशों को इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी यानी बौद्धिक संपदा से जुड़े न्यूनतम मानदंडों को पूरा करना था.इसके तहत भारत सरकार को अपने पेटेंट के नियमों में बदलाव करना पड़ा लेकिन भारतीय फार्मा उद्योग इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं था. TRIPS समझौते के तहत सरकार को 2005 तक अपने दवा उद्योग को इन बदलावों के लिए तैयार करने का समय मिला. पहले ये माना गया कि फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट पेटेंट शुरू करने से भारत में फार्मा उद्योग पर उलटा असर पड़ेगा लेकिन हुआ इसका उलटा और TRIPS के बाद भी भारतीय फार्मा उद्योग तेजी से बढ़ता रहा.दूसरी अच्छी बात ये हुई कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने अनुसंधान और विकास पर निवेश और अन्य मल्टी नेशनल कंपनियों से सहयोग बढ़ा दिया. सरकार ने भी इस ओर काफी सहयोग दिया. पेटेंट ऐक्ट में कई बदलाव किए गए और सरकारी संस्थानों में भी इस दिशा में रिसर्च को बढ़ावा दिया गया. दवा उद्योग के सामने चुनौतियां आती रहीं लेकिन वो कामयाबी के साथ उनका सामना करता गया. आम लोगों के लिहाज से जेनेरिक दवाएं भारतीय फार्मा उद्योग की एक बड़ी कामयाबी मानी जाएगी.कम लागत के कारण भारत के खुदरा बाजार में आज 70 से 80 फीसदी दवाएं जेनेरिक दवाएं हैं. भारत में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी के कारण जेनेरिक दवाओं का बाजार और बढ़ने की संभावना है. एक अध्ययन के मुताबिक भारतीय जेनेरिक दवा बाजार 2022 में USD 24.53 अरब डॉलर का था और करीब 6% की सालाना वृद्धि के साथ जेनेरिक दवा बाजार के 2030 तक USD 35.62 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. जेनेरिक ड्रग्स की इस कामयाबी के अलावा एक पहलू और भी है वो ये कि जेनेरिक ड्रग्स को लेकर शिकायतें भी आती रही हैं. जैसे 2018 में Central Drug Standard Control Organization (CDSCO) ने कुल जेनेरिक दवाओं में से 4.5% ऐसी दवाओं की पहचान की जो खराब क्वॉलिटी की थीं यानी सबस्टैंडर्ड थीं. इसकी एक बड़ी वजह है देश में क्वॉलिटी टेस्टिंग सुविधाओं की कमी. ऊपर से भ्रष्टाचार. IMA के मुताबिक देश में बनने वाली दवाओं में से महज 0.1% ड्रग्स की ही क्वॉलिटी के लिए जांच होती है.दवाओं की क्वॉलिटी और निर्माण पर निगाह रखने वाली संस्थाओं के पास पैसे, संसाधनों और मैनपावर की कमी भी एक वजह है. इसके अलावा नकली दवा बनाने वालों पर भी पूरी तरह लगाम नहीं लग पाई है. ऐसी नकली दवाओं के सप्लायर दवा विक्रेताओं के स्तर पर काम करते हैं. कई बार वो किसी बड़ी कंपनी के नाम से अपनी नकली दवा बेचते हैं जबकि मूल कंपनी को इसका पता ही नहीं होता लेकिन जेनेरिक दवाएं फिर भी आज लोगों के लिए बड़ी राहत हैं. 

यही वजह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी लोगों से मोटापे से बचने के लिए व्यायाम करने या खाद्य तेल का इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं. प्रधानमंत्री मोदी खुद भी फिटनेस को लेकर काफी जागरूक हैं. योग और संयमित खानपान उनकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा है. फिटनेस को लेकर उनकी जागरूकता ही है कि वो फिटनेस चैलेंज लेने में भी पीछे नहीं हटते और फिटनेस चैलेंज देने में भी.
Bol CG Desk

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