Bhukamp के powerful झटको से हिन्दुस्तान का ‘दिल’ कितना सुरक्षित, तुर्की में हजारों लोगों की चली गई जान
बोल छत्तीसगढ़। तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी Bhukamp ने 4000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली और यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। भूकंप के झटके इतने जोरदार थे कि 2000 से ज्यादा इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह गई। भारत से भी NDRF की टीमें तुर्की की मदद के लिए रवाना हो चुकी हैं। राहत और बचाव के कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। मलबे में दबे लोगो को निकालने का कार्य जारी है। हजारों लोगों की इन इमारतों के नीचे दब जाने के कारण हो गई है।
Bhukamp का जब-जब आता है जलजला
दिल्ली-एनसीआर में भी कई मौको पर भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे है। भूकंप (Earthquake) के ये झटके लोगों को अंदर से हिलाकर रख देते है, भूकंप के झटके आने से मानों दिल्ली वालों की दिल की धड़कन रुक सी जाती है। भारत के ऐसे कई इलाके है जहाँ यह झटके अक्सर आते रहते है। इन झटकों के महसूस होते ही लोग अपने घरों से बाहर निकल जाते है।
Bhukamp के लिहाज से दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) पहले ही सिस्मिक जोन-4 में दर्ज है। वहीं यहां एक बड़ी आबादी आज घरों के बजाय फ्लैटों में रहती है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि दिल्ली-एनसीआर में फ्लैटों (Flats) में रहने वाली ये आबादी भूकंप के दौरान कितनी सुरक्षित है?
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दिल्ली एवं अन्य स्थानों को लेकर वैज्ञानिक यह बोले
वैज्ञानिकों की मानें तो दिल्ली सहित यूपी और हरियाणा के कुछ इलाके जो एनसीआर में आते हैं, भूकंप के लिहाज से संवेदनशील हैं। सिस्मिक जोन-4 (Seismic Zone-4) में होने के कारण यहां Bhukamp का खतरा लगातार बना रहता है। कुछ दिन पहले ही भूकंप विज्ञान विभाग की ओर से आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली-एनसीआर के नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद आदि शहरों में बड़ी संख्या में मौजूद फ्लैट और घर भूकंप के तेज झटकों को नहीं झेल सकते हैं। वहीं दिल्ली के कई इलाकों में अवैध रूप से बसी कॉलोनियां और पहले से बनी ऐसी सैकड़ों पुरानी इमारतें हैं जो भूकंप के दौरान ढहने की कगार पर हैं। ऐसे घरों में रहना खतरे से खाली नहीं है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) में प्रोग्राम डायरेक्टर, सस्टेनेबल हेबिटेट प्रोग्राम रजनीश सरीन से बातचीत में कहते हैं कि सिस्मिक जोन-4 में होने के चलते एनसीआर निश्चित ही खतरे की जद में तो है ही, वहीं यहां निर्माण कार्य भी तेजी से हो रहा है। यहां 30-35 मंजिला गगनचुंबी इमारतें बड़ी संख्या में बन रही हैं। लिहाजा क्या ये फ्लैट Bhukamp रोधी हैं? क्या इन फ्लैटों या इमारतों को भूकंप के दौरान नुकसान नहीं होगा और यहां रहने वाले लोग सुरक्षित होंगे? यह सरकार और खुद लोगों के लिए जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
Bhukamp के दौरान कोई भी हाईराइज इमारत या घर कितना प्रभावित होगा यह कई चीजों पर निर्भर करता है। जैसे उस इमारत में इस तरह जोड़कर मेटेरियल लगाया है कि वह अलग-अलग दिशाओं में व्यवहार करता है तो इमारत में भूकंप के दौरान दरार आने या गिरने का खतरा पैदा हो जाता है। निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सरिया आदि की लैब में जांच न करवाना और उसका इस्तेमाल करना, नई या पुरानी इमारत के आसपास लंबे समय तक वॉटर लॉगिंग की समस्या, मेंटीनेंस का अभाव, कई सालों तक इमारत पर पेंट न होना या सीमेंट का उखड़ते रहना, खराब माल का इस्तेमाल आदि भी इमारतों को कमजोर बनाता है।
कुछ दिनों पहले नेपाल में आए Bhukamp के बाद केंद्र सरकार की ओर से इमारतों या कंस्ट्रक्शन साइटों के रीसर्टिफिकेशन को लेकर नई गाइडलाइंस भी जारी की गई थीं। जिनमें पुरानी बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स से रीसर्टिफाई कराना अनिवार्य किया गया है लेकिन इसके लिए पैच टेस्ट करना होता है. जिसमें कंक्रीट का सैंपल लेकर उसे लैब में भेजा जाता है। वहीं भवन निर्माण में जो सरिया का इस्तेमाल होता है, उसकी भी जांच कराई जानी जरूरी है लेकिन हो क्या रहा है? 2007-08 के बाद निर्माण कार्य अब कोरोना के बाद बहुत तेज गति से हो रहा है लेकिन उस गति से नियमों का पालन नहीं हो रहा।
भूकंप में हो सकता है नुकसान?
कुछ दिन पहले आई रिपोर्ट और सर्वे में बताया गया कि दिल्ली सहित एनसीआर में भूकंप के लिहाज से इमारतें नहीं बनी हैं। कहा गया कि 80 फीसदी इमारतें Bhukamp के लिहाज से रहने लायक नहीं हैं, हालांकि ये सर्वे फिजिकली किया गया था या लैब पर आधारित था ये कहना जरा मुश्किल है लेकिन कहा गया कि रिेक्टर स्केल पर 7 की तीव्रता का भूकंप आया तो दिल्ली में बड़ा नुकसान हो सकता है। वहीं डीडीए ने भी ऐसी ही 300 इमारतों की सूची तैयार की थी जो भूकंप नहीं झेल सकतीं।
फ्लैट कितने सुरक्षित?
जहां तक Bhukamp में हाईराइज फ्लैटों की बात है तो ये कितने सुरक्षित हैं, कहना काफी मुश्किल है क्योंकि भारत में फ्लैटों को आए हुए अभी लंबा समय नही बीता है जबकि जमीन पर खड़े हुए 300-400 साल पुराने कम ऊंचाई वाले मकान आज भी सुरक्षित बने हुए हैं। फ्लैट तकनीक यहां के लिए नई है, लेकिन मरम्मत में लापरवाही, निर्माण में इस्तेमाल होने वाली खराब किस्म की सामग्री और री सर्टिफिकेशन या गाइडलांइस का पूरी तरह पालन न होने से ये भूकंप के दौरान खतरा पैदा कर सकते हैं।
गुरुग्राम है सबसे खतरनाक स्तर पर
एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली एनसीआर 3 सक्रिय फॉल्ट लाइन पर स्थित है। जबकि जबकि गुरुग्राम सात सक्रिय फॉल्टलाइन पर मौजूद होने के चलते दिल्ली-एनसीआर के सबसे खतरनाक शहर में शामिल है।
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