Mahashivratri विशेष : रायपुर का ऐसा शिवालय जिसके दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना, आज होंगे कई Big Program
1. नीलकंठेश्वर मंदिर, मठपारा
मठपारा स्थित भगवान भोलेनाथ की 12 फीट ऊंची नीले रंग की प्रतिमा के कारण इसे नीलकंठेश्वर महादेव नाम से जाना जाता है। पहले यह प्रतिमा खुले आकाश तले विराजित थी। अब प्रतिमा के ऊपर शेड का निर्माण कर दिया गया है, ताकि बारिश से प्रतिमा सुरक्षित रहे। पहले यह इलाका वीरान था, शिव प्रतिमा के निर्माण के बाद से यह अब एक पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित हो रहा है। भोलेनाथ की ऊंची प्रतिमा के समक्ष नंदी की प्रतिमा भी आकर्षण का केंद्र है, सावन महीने में जलाभिषेक करने हजारों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
Mahashivratri पर होता है विशेष कार्यक्रम
15 साल पहले मठपारा बस्ती के समीप गणेश पर्व पर हर साल गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती थी। उस दौरान गणेश समिति के सदस्यों ने खुले इलाके में सबसे ऊंची भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा बनवाई। कलाकार कृष्णा मूर्ति ने रेत, गिट्टी, सीमेंट से प्रतिमा का निर्माण किया। कुछ ही बरसों में यह मंदिर प्रसिद्ध हो गया और Mahashivratri में शिव विवाह का आयोजन तथा सावन के महीने में कांवरियों का जत्था उमड़ने लगा। अब इस मंदिर के आस-पास सुंदर बगीचा बना दिया गया है, मंदिर में आने वाले श्रद्धालु परिवार समेत गार्डन की खूबसूरती का नजारा लेते हैं।
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2. नरहरेश्वर महादेव मंदिर, नरैया तालाब
रायपुर में स्थित नरहरेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग हैं। Mahashivratri के इस पर्व में भगवान भोले नाथ की साज सज्जा के साथ ही पूरे मंदिर परिसर को फूलों से सुसज्जित किया जा रहा है। इस मंदिर से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है। यहां प्रतिवर्ष के अनुसार इस वर्ष भी चांदी का श्रृंगार भगवान भोलेनाथ को किया जाएगा। प्रतिवर्ष के अनुसार इस वर्ष Mahashivratri पर भोले की बारात कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा हैं।
3. शिव हरी शिव मंदिर, नेहरू नगर, कालीबाड़ी
22 साल पुराना यह शिव मंदिर कालीबाड़ी से गोल बाजार जाने वाले मुख्य मार्ग के किनारे स्थित है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण यहां रहने वाले उत्कल समाज के द्वारा कराया गया है। सावन एवं सभी कार्यक्रम में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती है । जानकारी के अनुसार यहां शिवलिंग पहले से ही मौजूद था, टीन के शेड के नीचे होने के कारण समाज ने इसके निर्माण और पूजा पाठ करने की जिम्मेदारी ली। Mahashivratri पर भी कई कार्यक्रम आयोजित किया जाते है।
4. हाटकेश्वर नाथ मंदिर, महादेव घाट, रायपुरा
रायपुर में महादेव घाट पर हटकेश्वर महादेव का चमत्कारिक मंदिर है। खारुन नदी के तट पर स्थित महादेव मंदिर के पीछे त्रेता युग की एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। जिसके चलते यहां देशभर ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर खारुन नदी के तट पर होने की वजह से महादेव घाट के नाम से प्रसिद्ध है। रायपुर शहर से 8 किमी दूर स्थित 500 साल पुराना भगवान शिव का यह मंदिर प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। Mahashivratri समेत अनेक पर्वों में आस्था के सैलाब में गोता लगाने के लिए श्रद्धालु महादेव घाट पहुंचते हैं।
मान्यता है कि तकरीबन 600 साल पुराने इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से भक्तों की हर इच्छा पूरी हो जाती है। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार इस मंदिर में दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। बारिक नक्काशी से सुसज्जित इस भव्य मंदिर की आंतरिक और बाहरी कक्षों की शोभा देखते ही बनती है। पुजारी महेश बताते हैं कि इस मंदिर के मुख्य आराध्य भगवान हटकेश्वर महादेव नागर ब्राह्मणों के संरक्षक देवता माने जाते हैं। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के पास ही रामजानकी, लक्ष्मण और बरहादेव की प्रतिमा है।
5. वट पीपलेश्वर महादेव, सप्रे शाला
हनुमान मंदिर, सप्रे शाला के पास बरगद और पीपल पेड़ के पास विराजमान भगवान शिव को यहां वट पीपलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। बता दे कि यह शिवलिंग मराठा शासन काल के समय से यहां मौजूद है। वर्तमान कोराेना काल के मंदिर का जीर्णोधार कराया गया है। बताया जाता है कि जब देश में अंग्रेज हुकूमत करते थे तब यह मंदिर अंदर था जो बाद में समय के साथ मुख्य मार्ग के समीप आया। यहां बरगद और पीपल का पेड़ तकरीबन 130 साल पुराना है। अभी राजू मस्के हनुमान मंदिर के संरक्षक ही इस मंदिर को देखरेख समस्त मोहल्ला वासियों के साथ करते है। Mahashivratri के तहत यहां तैयारियां जारी है।
6. बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर, बूढ़ातालाब
रायपुर में बूढ़ातालाब से लगे बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर की बात करेंगे। बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। महादेव मंदिर बूढ़ातालाब के निकट है इसलिए महादेव को बूढ़ेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि जहां मंदिर का निर्माण हुआ है वहां पहले शिवलिंग था जो बूढ़ातालाब से लगा हुआ था। इस शिवलिंग पर हमेशा सांप लिपटे रहते थे। पुष्टिकर समाज द्वारा 1950 में मंदिर का जीर्णोद्वार किया गया। आज भी पुष्टिकर समाज द्वारा बनाई गई समिति मंदिर का संचालन करती है।
7. खोखेश्वर नाथ मंदिर, खो–खो तालाब
पुरानी बस्ती के खो-खो तालाब में स्थित इस शिव मंदिर को खोखेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भारतीय वास्तु कला का एक बेहतरीन उदाहरण है।इस मंदिर का निर्माण ईशान कोण को ध्यान में रखते हुए किया गया है। सैंकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर का कई मौकों पर जीर्णोधार कराया गया है। Mahashivratri में भी यहां विशेष तैयारियां की गई है।
8. बंधेश्वर नाथ मंदिर, बंधवा तालाब
खो-खो तालाब से लगे हुए इस तालाब में भगवान शिव बंदेश्वर नाथ के नाम से विराजित है। यहां के लोग बताते है कि इसका निर्माण सैंकड़ों वर्ष पहले कराया गया था। कल्याण सिंह दाऊ ने कई जमीने दान की थी बंधवा तालाब भी उन दान की गई जमीनों में से एक है। यहां भी आज Mahashivratri के अवसर पर भंडारा आयोजित किया गया है।
9. पंचमुखी महादेव मंदिर, नया तालाब, हांडीपारा
शहर के हांडीपारा स्थित इस तालाब के किनारे में वैसे तो कई शिव मंदिर मौजूद है किंतु पंचमुखी महादेव मंदिर इन सबसे अधिक पुराना है। पंचमुखी शिवलिंग होने के कारण से इसे पंचमुखी महादेव मंदिर कहा जाता है। वर्षों पुराने होने के कारण इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। Mahashivratri हो या सावन का पावन महीना भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं।
10. शिव महाकाली मंदिर, डंगनिया
शहर के डंगनिया इलाके में तालाब के किनारे स्थित इस शिव मंदिर में लोग भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं। साहू समाज के द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। शिव मंदिर के साथ ही यहां मां काली का भी मंदिर मौजूद है जिसके कारण ही यह मंदिर शिव महाकाली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। Mahashivratri में भगवान शिव का विशेष जलाभिषेक किया जायेगा।
11. शिव मंदिर, महाराज बंध तालाब
दूधाधारी तालाब के सामने महाराजबंध तालाब है। इस तालाब के किनारे ही प्राचीन शिव मंदिर है। महाराजबंध तालाब का विकास बिंबाजी राव भोंसले ने करवाया जो छत्तीसगढ़ के शासक थे। उनके शासन काल में तालाब का विकास हुआ था। तालाब पहले से बना हुआ था। शिव मंदिर का निर्माण बाद में कराया गया। यहां दीवालों एवं शिवलिंग को देखने से प्रतीत होता है कि यह सैंकड़ों वर्ष पुराना है। Mahashivratri के अवसर पर यहां भोलेनाथ की विशेष पूजा की जायेगी।
12. पंचमुखी महादेव मंदिर, सरोना
सरोना इलाके में 300 साल पुराना प्राचीन पंचमुखी शिवलिंग है l ऐसी मान्यता है कि यहां संतान प्राप्ति की कामना भगवान शिव के आशीर्वाद से पूरी होती है l देवों के देव महादेव के जितने रूप उतनी ही उनसे जुड़ी मान्यताएं भी हैं l हम आपको शिव के एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जिसका निर्माण संतान प्राप्ति की कामना से किया गया था और आज भी भोलेनाथ की कृपा यहां लोगों पर बरसती है l
साथ ही इस मंदिर में अवतार के रूप में पूजे जाते हैं यहां के तालाब में रहने वाले मछली और कछुए, यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं l यहां संतान प्राप्ति की कामना भगवान शिव के आशीर्वाद से पूरी होती है और उनकी सूनी गोद में किलकारियां खिल उठती हैं l Mahashivratri के दौरान यहां विधिवत् पूजन किया जाता है।
सरोना में महादेव का मंदिर यहां के ठाकुर परिवार के वंशजों का कहना है कि उनके पूर्वज निसंतान थे कई जगह दुआएं मांगी लेकिन औलाद का सुख नसीब नहीं हुआ, लेकिन एक नागा साधु द्वारा नया मंदिर स्थापना के लिए कहा गया और मंदिर स्थापना के साथ ही पुत्र की प्राप्ति हुई l तभी से इस पंचमुखी शिव का जागृत रूप विख्यात हो गया l यहां ना सिर्फ छत्तीसगढ़ से बल्कि दूसरे राज्यों से भी लोग संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं l
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