Congress CWC: कांग्रेस का राष्ट्रीय सम्मेलन में रायपुर आए थे जवाहर लाल नेहरू व लाल बहादुर शास्त्री
फेसबुक मित्रों के बीच जिज्ञासा उठी है कि रायपुर में क्या कभी अखिल भारतीय कांग्रेस Congress CWC सम्मेलन हुआ था। या इस वर्ष 2023 में पहली बार हो रहा है। इस सिलसिले में ‘अमर उजाला‘ से संबद्ध पत्रकार सुदीप ठाकुर की किताब ‘लाल श्याम शाहः एक आदिवासी की कहानी‘ से उद्धरण आए हैं। उससे भी जानकारी लेकर डा0 परिवेश मिश्रा ने कल ही एक बेहतर लेख लिखा है। अपूर्व गर्ग ने जिज्ञासा जाहिर की है कि शायद नेहरू जी पहली बार इंजीनियरिंग कॉलेज का उद्घाटन करने के नाम पर रायपुर 1963 में ही आए थे। फिर सबने चाहा कि मैं इस संबंध में कुछ कहूं क्योंकि मैं उस सम्मेलन का चश्मदीद गवाह रहा हूं।
शुरू में कह देना चाहिए शायद 1960 की अक्टूबर में रायपुर में हुआ अखिल भारतीय कांग्रेस Congress CWC का सम्मेलन वैसा औपचारिक अधिवेशन नहीं था जिसे कांग्रेस कार्यसमिति के फैसले के तहत आयोजित किया जाता है। लेकिन अपने कलेवर और रखरखाव के लिहाज से वह विशेष अधिवेशन अखिल भारतीय कांग्रेस सम्मेलन Congress CWC ही था। उसमें नेहरू के साथ साथ कांग्रेस के तमाम बड़े नेता और मंत्रिगण शामिल हुए थे।
Congress CWC को लेकर कनक तिवारी के संस्मरण
मैं उस वक्त बी0 एस सी0 फाइनल का छात्र था और हॉस्टल नंबर 1 में प्रीफेक्ट था। उसका बाद में नामकरण कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य रहे उमादास मुखर्जी के नाम पर हो गया है। सभी हॉस्टल और कई प्रोफेसरों के निवास स्थान खाली करा लिए गए थे क्योंकि वहां कॉलेज में डेलीगेट्स और अतिथियों को ठहराना था। अपने निजी कारणों से मैं हॉस्टल खाली नहीं कर सकता था। लिहाजा मित्र ललित तिवारी और कवि राधिका नायक आदि की मदद से मैं रायपुर के विधायक तथा स्वागताध्यक्ष शारदाचरण तिवारी से मिला। उन्होंने बीच का रास्ता निकाला और मुझे अपने हॉस्टल में ठहरने वाले अतिथियों की देखभाल के लिए स्वागत सचिव बना दिया।
अचानक मेरे हॉस्टल में एक बड़ी सी बस में भरकर कई कांग्रेस कार्यकर्ता उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्त की अगुवाई में उतरे। चंद्रभानु गुप्त धाकड़ नेता थे। चुस्त पाजामा कुरता और सिर पर टोपी पहने मुझसे मुखातिब हुए। कहा कि इन सब साथियों को कमरे दिखाओ। मुझे अच्छी तरह याद है नेहरू प्रणीत राष्ट्रीय एकीकरण की मुहिम के चलते वहां कई राज्यों के डेलिगेट्स को ठहरना था। चंद्रभानु गुप्त अड़ गए। बोले तुम्हारी व्यवस्था कुछ भी हो।
मेरे सब साथी यहीं ठहरेंगे। मैं क्या कर सकता था। बाकी साथियों को पीछे छोड़कर वे मेरे साथ हॉस्टल में आए और कहा कि जो सबसे बड़ा कमरा है। वहां हम एक साथ बैठेंगे। तो मैंने उनको संभवतः सामने की ओर का कोने का 9 नंबर का कमरा दिखाया। वे अपने साथ कपड़े का बैनर लाए थे। मुझसे हथोड़ी और खीले मांगे। उसे ठोककर साथियों को बुलाया और कहा ये अपना दफ्तर है। सब कमरे इनसे देखकर घुस जाओ। सारी व्यवस्था तहस नहस हो गई।
उनके आने के कुछ पहले पंडित कमलापति त्रिपाठी कुछ चुनिंदा लोगों के साथ आए थे। पूरी तौर पर पहले उन्होंने एक छोटे कमरे में अपने निवास का प्रबंध किया और पूजा पाठ की व्यवस्था भी चाक चौबंद कर ली। शायद पूर्वमुखी कमरे 47 और 48 लिए थे। पूरा हॉस्टल उत्तरप्रदेश के डेलिगेट्स से भर गया। बाकी भारत को जहां जाना है जाए।
हॉस्टल से बाहर निकलकर एक खाली पडे़ ड्रम पर गुुप्त जी स्थापित हो गए। मुझसे पूछा। मैं कहां का रहने वाला हूं। उन्हें खुश करने की गरज से मैंने कहा। मेरे पूर्वज कानपुर के हैं। गुप्त जी ने मेरी पीठ ठोकी और कहा। तुम तो घर के लड़के हो। हम सही जगह आए हैं। अचानक उसी बीच एक कार साइंस कॉलेज के हमारे प्रो0 सुरेन्द्रदेव मिश्र के निवास की ओर से मुड़कर हॉस्टल के सामने आ गई। ड्राइवर ने रोककर मुझसे पूछा। Congress CWC
कागज की परची में प्रो0 डी0 डी0 शर्मा का नाम लिखा था कि यह क्वार्टर कौन सा है। हॉस्टल नंबर 1 और हॉस्टल नंबर 2 के बीच प्रो0 डी0 डी0 शर्मा और उनसे लगा हुआ क्वार्टर प्रो0 एस0 के0 मिश्रा का था। कार चली गई। मैंने गौर नहीं किया था। चंद्रभानु गुप्त बुदबुदा कर बोले। कार में लाल बहादुर शास्त्री थे। वे प्रो0 डी0 डी0 शर्मा के खाली कर दिए गए क्वार्टर में ठहरे।
शास्त्री जी का नाम सुनकर मुझे अंदर से कीड़े ने काटा कि उनका ऑटोग्राफ लिया जाए। उस वक्त शायद वे बिना विभाग के मंत्री थे। वे तैयार होकर अखबार और कुछ कागजात पढ़ रहे थे। मुझे बाहर सोफे पर बिठा दिया गया। बेहद विनम्र शास्त्री जी मुखातिब हुए। मैंने उनसे विनम्रता में ऑटोग्राफ देने कहा। भारत का एक केन्द्रीय नेता कितना विनम्र था! उन्होंने ऊपर से नीचे मुझे देखते पूछा। किस कक्षा में पढ़ते हो। बी0 एस सी0 फाइनल को एक बड़ी क्लास समझाते मैंने कहा। मैं गणित का विद्यार्थी हूं। विनम्रता में दूसरा हथियार दिखाया। वे बोले।
आप तो काफी ऊंची कक्षा में हैं। इतना तो मैं नहीं पढ़ पाया। फिर धीरे से आजादी के आंदोलन की ओर इशारा करते पूछा। क्या आप खादी नहीं पहनते। मेरे इंकार करने पर वे समझाते हैं कि आप जैसे युवक अगर एक जोड़ी खादी के कपड़े ही पहनने लगें। तो खादी ग्राम उद्योग की काया पलट सकती है। पराजित होकर मैं कहता हूं। कि मैं खादी के कपड़े पहनकर आता हूं। तभी ऑटोग्राफ लूंगा। एक दोस्त से उधार लेकर बेंसली रोड/ मालवीय रोड के खादी भंडार से किसी तरह एक जोड़ी कुरता पाजामा का जुगाड़ करता हूं। हालांकि उस समय पूरी तरह फिट नहीं हुआ।
शास्त्री जी ने ऑटोग्राफ दिया। संयोगवश उसी समय उनके पास एक फोन आया। जो राजकुमार कॉलेज से नेहरू जी के किसी सहायक ने किया होगा। उन्होंने अपनी विनम्रता में लेकिन जवाब दिया कि नहीं नहीं मैं यहीं ठीक हूं। वहां बड़े बडे़ आदमियों के पास ठहकर मैं क्या करूंगा। यहां कोई तकलीफ नहीं है। फोन बंद हुआ। दुबारा फिर आया। Congress CWC
उन्होंने फिर अपना उत्तर दोहराया। मुझे लगा अच्छा हुआ। मैंने खादी पहनने की उस व्यक्ति की बात मान ली जो व्यक्ति विनम्र दिखने पर भी नेहरू जी के आमंत्रण नहीं मांगता। मुझे याद है चंद्रभानु गुप्त उनकी गुजरती मोटर देखकर सिहर उठे थे। पता नहीं शास्त्री जी क्या थे?
अपने हॉस्टल की जिम्मेदारियों के बावजूद मैं एकाध बार सम्मेलन Congress CWC में भाषण सुनने गया था। हालांकि सब कुछ भूल सा गया है कि कौन क्या बोला। नेहरू जी भाषण देने के बाद कॉलेज के अंदर की सड़क से जी0 ई0 रोड अर्थात नेशनल हाइवे की ओर खुली जीप पर बढ़ रहे थे। तो भीड़ के कारण जीप बहुत धीरे चल रही थी। टाइम्स ऑफ इंडिया का एक संवाददाता नेहरू से मुखातिब पीछे की ओर दौड़ता हुआ उनकी तस्वीर लेना चाहता था। लेकिन एक इंस्पेक्टर उसे धकिया देता था।
एक जगह सघन नारेबाजी और फूलों के हार नेहरू जी की ओर फेंके जाने के करतब के कारण जीप खड़ी हो गई। तो उस पत्रकार ने लगभग चीखकर पुलिस के सबसे बडे़ अधिकारी का नाम लेकर कहा। रूस्तम जी योर डॉग डज़ नॉट नो हाउ टू बिहेव विथ ए प्रेस मैन। (तुम्हारा श्वान नहीं जानता कि एक पत्रकार से किस तरह का सलूक करना चाहिए।) नेहरू जी के चले जाने के बाद उस पत्रकार ने मुझसे मदद मांगी थी कि मैं उसके लिए टैक्सी का प्रबंध कर दूं। Congress CWC
ताकि वो शहर जा सके। उन दिनों के रायपुर में तत्काल टैक्सी की कहीं से भी सुविधा कहां थी? मैंने अपने एक परिचित को वहां देखकर उनके वाहन के जरिए उस पत्रकार को शहर की ओर रवाना कर दिया।
मुझे लगता है नेहरू जी रायपुर में दो दिन रुके थे और अधिवेशन तीसरे दिन समाप्त होने को था। यह तो कांग्रेस कमेटी के पास रेकॉर्ड होना चाहिए कि यह कौन सा सम्मेलन था। उसके स्थानीय पदाधिकारी कौन थे। किसकी क्या भूमिका थी। उस वक्त की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के पास अपना कोई विश्वस्त रेकॉर्ड तो होना चाहिए। मेरी सीमा अपने हॉस्टल और शास्त्री जी की देखभाल तक सीमित थी। Congress CWC
उस वक्त का एक युवा छात्र नेहरू समेत कांग्रेस के बडे़ धाकड़ नेताओं से बेतकल्लुफ होकर मिलने की मानसिकता में कहां था? सुदीप ठाकुर की किताब में कुछ तथ्यपरक उल्लेख हैं। जो उन्होंने कई महत्वपूर्ण नेताओं से निजी बातचीत के बाद विस्तारित किए हैं। स्मरण शक्ति और तथ्यों के वेरिफिकेशरन की विश्वसनीयता तो होती है। बाकी कांग्रेस के कर्णधार जानें। Congress CWC
Congress CWC १९६२ बैठक के बाद
रायपुर कांग्रेस सम्मेलन के ठीक एक साल बाद मैं साइंस कॉलेज यूनियन का प्रेसिडेंट बना। तब नई दिल्ली के तालकटोरा गार्डन्स में आयोजित अंतरविश्वविद्यालयीन यूथ फेस्टिवल में वाद विवाद प्रतियोगिता में मैं स्वामी आत्मानंद के छोटे भाई और बाद में भूपेश बघेल के ससुर बने डा0 नरेन्द्र देव वर्मा के साथ हिस्सेदार था। उसी वक्त मैंने जवाहरलाल नेहरू से एक छोटा इंटरव्यू भी लिया था।
Congress CWC छत्तीसगढ़ में यह भी बहुत प्रचारित किया गया है कि 1920 में गांधी जी पहली बार छत्तीसगढ़ में धमतरी और कंदेल ग्राम आए थे। इस संबंध में कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं मिलता। लेकिन स्थानीय लोगों ने कई लेख लिखे हैं। Congress CWC पुरातत्वविद राहुल कुमार सिंह ने इस संबंध में बेहतर खोज की है। इतिहास के तथ्यों और वस्तुओं को सुरक्षित रखने में हमारी निर्ममता और अनदेखी है कि यह भी कांग्रेस कमेटी के पास नहीं है कि 1960 में क्या हुआ था, जबकि सरकार के स्तर पर भी तमाम तरह का सहयोग तो दिया ही गया था। वह भी तो सरकारी कागजों में कहीं न कहीं दर्ज होगा। Congress CWC
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