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ट्रंप ने क्यों सबके खेल बिगाड़े? रूस-चीन के बाद क्या फ्रांस है चौथा खिलाड़ी, जानिए बॉस कौन?

ट्रंप ने क्यों सबके खेल बिगाड़े? रूस-चीन के बाद क्या फ्रांस है चौथा खिलाड़ी, जानिए बॉस कौन? Donald Trump Russia China France Europe Fight: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फ़ैसले दुनिया के भूसामरिक समीकरणों को नए सिरे से तैयार करते दिख रहे हैं. बीते पिचहत्तर से अस्सी साल में दुनिया के जो भूसामरिक हालात लगातार ठोस हुए, दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के बीच दो ध्रुवों में बंटी और फिर इक्कीसवीं सदी में तीसरे ध्रुव की तरह चीन का उभार शुरू हुआ, उन सारे समीकरणों को ट्रंप अब बिगाड़ते दिख रहे हैं. वैसे ट्रंप कब क्या कह दें, कब पुरानी बात से पलट जाएं इसका ख़तरा बड़े सामरिक-कूटनीतिक जानकार भी उठाना नहीं चाहेंगे.रूस यूक्रेन युद्ध के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को ज़िम्मेदार बताने वाले और व्हाइट हाउस में उनके साथ ख़राब राजनयिक शिष्टाचार करने वाले ट्रंप ने आज अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर लिख दिया कि जब तक रूस यूक्रेन के साथ युद्धविराम नहीं करता और शांति समझौते पर नहीं पहुंचता, तब तक वो रूस पर सख़्त बैंकिंग प्रतिबंध और टैरिफ़ लगाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. उन्होंने लिखा कि रूस युद्धभूमि में यूक्रेन पर बम बरसा रहा है, इसलिए वो प्रतिबंध और टैरिफ़ लगाने की सोच रहे हैं. उन्होंने रूस और यूक्रेन दोनों से कहा कि बहुत देर होने से पहले बातचीत की टेबल पर आ जाएं. कभी लगता है पुतिन से ट्रंप की सही छन रही है और अब लग रहा है कि ठन गई है. ट्रंप की बात ट्रंप ही जानें… ट्रंप लगातार दुनिया को ये बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे कि वही बॉस हैं. रूस-यूक्रेन के मुद्दे पर वो यूरोपियन यूनियन को पहली ही उसकी सामरिक हैसियत बता चुके हैं और कह चुके हैं कि अपनी सुरक्षा का इंतज़ाम अब वो ख़ुद करे. इसके बाद से ही यूरोपीय देशों में काफ़ी हलचल है. अमेरिका की सुरक्षा छतरी के नीचे अभी तक चैन से रह रहे ये देश अब अपनी सुरक्षा की चिंता में हैं.फ्रांस बनेगा यूरोप का लीडर?इस दिशा में पहल की है फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों ने. जो यूरोप को अमेरिका द्वारा मुहैया कराई गई सामरिक सुरक्षा का विकल्प देने की तैयारी में दिख रहे हैं. मैक्रों ने बुधवार को देश के नाम एक संबोधन के दौरान साफ़ कहा कि अनिश्चतितता से भरे इस समय में यूरोपियन देशों की सुरक्षा फ्रांस की Deterrent Force से जुड़ गई है. Deterrent Force का सीधा मतलब है परमाणु हथियार. मैक्रों ने कहा कि उन्होंने इस मसले पर सामरिक बहस को शुरू करने का फ़ैसला किया है. उन्होंने ये भी साफ़ किया कि जो भी फ़ैसला होगा, हमेशा फ्रांस के राष्ट्रपति के हाथ में होगा, जो सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख हैं. अपने संबोधन में फ्रांस के राष्ट्रपति ने रूस को फ्रांस और यूरोप के लिए ख़तरा बताया. सीधे-सीधे कहा जाए तो मैक्रों बता रहे हैं कि समय आ गया है जब यूरोप को अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका के बजाय अपने ही बीच के देश फ्रांस पर भरोसा करना चाहिए.हालांकि, मैक्रों के इस प्रस्ताव पर फ्रांस में वामपंथियों से लेकर दक्षिणपंथियों तक तीखी प्रतिक्रिया दी है. ऐतराज़ जताते हुए पूछा गया कि क्या फ्रांस अपने परमाणु जखीरे को दूसरे देशों के साथ बांटने पर विचार कर रहा है? इस पर फ्रांस के रक्षा मंत्री ने साफ़ किया कि परमाणु हथियार फ्रेंच हैं और उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक फ्रांस के ही पास रहेंगे, जिसका फ़ैसला राष्ट्रपति के हाथ में है. किसी देश के साथ हथियार साझा नहीं किए जाएंगे. उधर, रूस ने फ्रांस के राष्ट्रपति के इस प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने मैक्रों के भाषण को बहुत ही ज़्यादा भड़काऊ बताया है. पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा इससे ये साबित होता है कि फ्रांस युद्ध के बारे में, युद्ध को जारी रखने के बारे में ज़्यादा सोचता है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी मॉस्को में कहा कि मैक्रों का बयान रूस को एक धमकी है.रूस ने दी चेतावनीफ्रांस के राष्ट्रपति ये भी दोहरा चुके हैं कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर एक शांति समझौता होता है तो उसे बनाए रखने के लिए यूरोप के सैन्य बलों को यूक्रेन भेजा जा सकता है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इस पर कहा कि यूक्रेन में यूरोपीय देशों की सेनाओं की तैनाती के विरोध पर रूस क़ायम है, क्योंकि यूरोपीय देश निष्पक्ष नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि इस मामले में समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है. ये पूरी चर्चा एक खुली बदले की भावना से की जा रही है. रूस यूक्रेन में यूरोप की सेनाओं को वैसे ही देखेगा जैसे वो यूक्रेन में नाटो की मौजूदगी को देखेगा. सर्गेई लावरोव ने मैक्रों की तुलना हिटलर और नेपोलियन से की और कहा कि मैक्रों ने खुलकर ये नहीं कहा कि वो रूस को जीतना चाहते हैं, लेकिन चाहते वो यही हैं. वो रूस के ख़िलाफ़ मूर्खतापूर्ण आरोप लगा रहे हैं और पुतिन इसे पागलपन और बकवास मानते हैं. यूरोप के देश फ्रांस की सुन रहेरूस मैक्रों के प्रस्ताव को शक़ से देख रहा है, लेकिन ये जानना ज़रूरी है की बाकी यूरोपीय देश इसे किस तरह देख रहे हैं. अधिकतर यूरोपीय देश इस सिलसिले में मैक्रों के रुख़ से सहमत दिख रहे हैं, जबकि कुछ अब भी असमंजस में हैं. स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ़ क्रिस्टैशॉन ने कहा कि सभी लोगों की तरह स्वीडिश लोग जितना संभव हो उतने कम परमाणु हथियार चाहते हैं. लेकिन अभी हमें खुश और कृतज्ञ होना चाहिए कि दो पड़ोसी देश हैं, जिनके पास परमाणु हथियार हैं. इसलिए ये अच्छा है कि फ्रांस खुलापन दिखा रहा है. अमेरिका का क़रीबी साथी रहा डेनमार्क जो ट्रंप द्वारा अपने ग्रीनलैंड इलाके पर कब्ज़े की बात से हैरान है, वो भी मैक्रों के प्रस्ताव से खुश है. डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटाह फ्रेडरिक्सन ने कहा कि मुझे लगता है कि हमें हर बात पर अब विचार करना चाहिए. सभी अच्छे विचार हमारे विचार विमर्श का हिस्सा होने चाहिए. पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनल्ट टुस्क ने कहा कि हमें फ्रांस के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. हमेशा की तरह ब्योरा यानी Details ज़्यादा ज़रूरी है, लेकिन इस सिलसिले में फ्रांस की इच्छा बहुत ख़ास है. सोवियत संघ से अलग हुए देश चिंतिततत्कालीन सोवियत संघ से सबसे पहले अलग हुए बाल्टिक देशों की चिंता ये है कि अगर यूक्रेन पर रूस हावी हो गया तो उसके बाद अगला नंबर उनका है. लिथुआनिया के राष्ट्रपति गीतानस नौसेदा ने इसे बहुत ही दिलचस्प विचार बताया. कहा कि हमें परमाणु सुरक्षा छतरी से ऊंची उम्मीदें हैं, क्योंकि ये रूस के हमले से बचाव में बहुत अहम होगा. लात्विया की प्रधानमंत्री एविका सिलिन्या ने फ्रांस के प्रस्ताव को विचार करने का एक मौका बताया और कहा कि इस मामले में देश के अंदर और बाहर बाकी यूरोपीय साथियों से बातचीत के लिए और समय की ज़रूरत है. फिलहाल हमारी सुरक्षा की गारंटी अमेरिका के साथ क़रीबी सहयोग में है. चेक प्रधानमंत्री पेत्र फ़ियाला भी इस मामले में फिलहाल संयम बरतने के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा कि मैक्रों के प्रस्ताव पर विचार संभव है, लेकिन अभी हमारी सुरक्षा की गारंटी अमेरिका के साथ क़रीबी सहयोग पर टिकी है. जर्मनी कर रहा अपनी तैयारीउधर, जर्मनी के चांसलर ओलफ़ शुल्ज़ जो अपने पद से हटने वाले हैं, वो मैक्रों से रणनीतिक तौर पर सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि ये ज़रूरी है कि अभी अमेरिका की फौजी सुरक्षा को न छोड़ा जाए, लेकिन पिछले महीने जर्मनी में चुनाव जीतने वाले नेता और संभावित चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने कहा कि फ्रांस के साथ परमाणु सहयोग पर बात करनी चाहिए. जर्मनी उन यूरोपीय देशों में से है, जहां नाटो के तहत अमेरिका के परमाणु हथियार तैनात हैं. चुनाव जीतने के बाद से जर्मनी की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन के नेता फ्रेडरिक मर्ज़ जर्मनी को ट्रंप के अमेरिका से दूर रखने की बात कर रहे हैं. यूरोप में जर्मनी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. यही वजह है कि जर्मनी भी यूरोप के सामने आए संकट के दौर में उसे नेतृत्व देने की कोशिश कर रहा है. फ्रेडरिक मर्ज़ ने चांसलर का पद संभालने से पहले ही एलान कर दिया है कि वो जर्मनी के रक्षा खर्च में काफ़ी बढ़ोतरी करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमारे महाद्वीप में हमारी आज़ादी और शांति को ख़तरे को देखते हुए हमें अपनी रक्षा के लिए जो ज़रूरी है, वो करना होगा.ब्रिटेन और फ्रांस आ रहे करीबयूरोपियन यूनियन के बाहर, लेकिन यूरोप के अंदर आ चुका ब्रिटेन भी यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर बाकी यूरोप के साथ है और ये बात समझ रहा है कि ट्रंप के बदले रवैये के चलते उसे भी अपनी सुरक्षा को गंभीरता से लेना होगा. इस मामले में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ यूरोप का नेतृत्व करने की कोशिश कर रहे हैं. बीते कई साल में पहली बार ब्रिटेन और फ्रांस एक दूसरे के इतना क़रीब दिख रहे हैं. इस बीच यूक्रेन के मुद्दे पर यूरोपियन यूनियन के नेताओं की आपात बैठक गुरुवार को ब्रसेल्स में हो चुकी है. इस बैठक में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की भी शामिल  रहे. ज़ेलेंस्की ने कहा कि यूरोप का भविष्य वॉशिंगटन या मॉस्को में तय नहीं होना चाहिए. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों द्वारा यूरोप की सुरक्षा के लिए अपने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के विचार के बीच हुई इस बैठक में यूरोप की सुरक्षा को जल्द से जल्द पुख़्ता करने पर विचार किया गया. यूरोपियन कमीशन की प्रमुख उर्सला वॉन डेर लेयन ने कहा कि आज इतिहास लिखा जा रहा है. इसके साथ ही उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सभी देश अपनी जेब ढीली करें और रक्षा पर ज़्यादा खर्च करें. लोन लेकर होगी सुरक्षा?ये अब साफ़ हो रहा है कि यूरोप को अब अपनी सुरक्षा के लिए 702 अरब डॉलर का इंतज़ाम करना होगा. सैनिक साजोसामान खरीदने के लिए 162 अरब डॉलर के लोन की बात हो रही है. अब सवाल ये है कि ऐटमी लिहाज़ से यूरोप की सुरक्षा कैसे होगी. यूरोपियन यूनियन की बात करें तो वहां अकेला फ्रांस ही है, जिसके पास अपने परमाणु हथियार हैं. Stockholm International Peace Research Institute – Sipri के मुताबिक फ्रांस के पास दुनिया में चौथा सबसे बड़ा परमाणु जखीरा है. उसके पास क़रीब 290 परमाणु हथियार हैं. फ्रांस के कुल परमाणु हथियारों के क़रीब 80% पनडुब्बियों पर बैलिस्टिक मिसाइल के तौर पर तैनात हैं. इसके अलावा लंबी दूरी के बमवर्षकों में क्रूज़ मिसाइलों पर भी परमाणु हथियार तैनात हैं. हालांकि, फ्रांस नाटो का सदस्य है, लेकिन उसके परमाणु हथियार नाटो के संयुक्त मिलिटरी कमांड स्ट्रक्चर का हिस्सा नहीं हैं. उसके ऐटमी हथियार स्वतंत्र हैं. Sipri के मुताबिक ब्रिटेन जो अब 27 देशों के यूरोपियन यूनियन का सदस्य नहीं है, उसके पास भी क़रीब 225 परमाणु हथियार हैं. ब्रिटेन के परमाणु हथियार नाटो के तहत इस्तेमाल किए जा सकते हैं. हालांकि, उनमें ख़ास बात ये है कि वो अमेरिका की तकनीकी सहायता पर भी काफ़ी हद तक निर्भर हैं. Stockholm International Peace Research Institute – Sipri के मुताबिक जून 2023 तक दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार रूस के पास थे. इनकी संख्या थी 5,889 थी. इनमें वो सभी हथियार हैं, जो भंडार में हैं या तैनात किए गए हैं या जो बेकार कर दिए गए हैं. दूसरे स्थान पर सबसे ज़्यादा 5,244 परमाणु हथियार अमेरिका के पास हैं. तो अकेले रूस और अमेरिका के पास दुनिया के कुल परमाणु हथियारों का क़रीब 88% है. 410 परमाणु हथियारों के साथ तीसरा स्थान चीन का है. फ्रांस के पास 290 परमाणु हथियार हैं. ब्रिटेन के पास 225 परमाणु हथियार हैं.क्या फ्रांस बन पाएगा अमेरिका का विकल्पशीत युद्ध के दौरान अमेरिका की परमाणु सुरक्षा के कारण उसके साथी देश ख़ासतौर पर नाटो सदस्य देश चैन से थे. यही वजह है कि सुरक्षा पाने वाले यूरोप और दुनिया के कई अन्य देशों ने अपने परमाणु हथियार बनाने पर काम ही नहीं किया. फ्रांस और ब्रिटेन के पास जो परमाणु हथियार हैं, वो उनके अपने हितों को बचाने के लिए ही पर्याप्त हैं. पूरे यूरोप के हिसाब से उन्हें तैयार नहीं किया गया है. उनके सामने रूस की चुनौती कई गुना बड़ी है. हालांकि, परमाणु हथियारों के मामले में एक बात ये भी है कि बर्बादी के लिए बस कुछ ही ऐटमी हथियार काफ़ी हैं. जानकारों के मुताबिक फ्रांस अभी उस स्तर की सामरिक परमाणु ढांचा नहीं बना सकता जैसा यूरोप में अमेरिका ने बनाया हुआ है. अमेरिका के मुक़ाबले फ्रांस के पास हवाई रास्ते से मार करने वाले परमाणु हथियार बहुत ही कम हैं और उन्हें अपग्रेड करने का काम काफ़ी जटिल और महंगा होगा.1956 से फ्रांस-अमेरिका में है टकरावफ्रांस के साथ ख़ास बात ये रही है कि नाटो का हिस्सा रहने के बावजूद फ्रांस ने हमेशा से अपनी परमाणु नीति को अमेरिका से स्वतंत्र रखा है. यही वजह है कि मैक्रों इस मामले में सबसे पहले आगे आए हैं, लेकिन सवाल ये है फ्रांस को अपनी परमाणु नीति अमेरिका से अलग रखने की ज़रूरत पड़ी क्यों. दरअसल, फ्रांस का अमेरिका के प्रति एक लंबा अविश्वास रहा है, जो 1956 के स्वेज़ नहर संकट तक जाता है. उस समय अमेरिका ने फ्रांस और ब्रिटेन को सामरिक लिहाज़ से अहम स्वेज़ नहर पर कब्ज़ा करने से रोक दिया था. तब यूरोप की इन कमज़ोर हो रही औपनिवेशिक शक्तियों के लिए ये एक बड़ा झटका था. इसे अमेरिका द्वारा धोखा मानते हुए फ्रांस ने अपने अहम हितों की सुरक्षा के लिए अपना परमाणु जखीरा बनाने का फ़ैसला किया. इसके एक दशक बाद अमेरिका के प्रति अविश्वास और अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखने की ख़ातिर फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति चार्ल्स डि गॉल ने फ्रांस को नाटो की इंटीग्रेटेड कमांड से वापस लेने का फ़ैसला किया. इसका नतीजा ये हुआ कि फ्रांस की ज़मीन से अमेरिका के फौजी संसाधन हटा लिए गए. साठ के दशक में फ्रांस के राष्ट्रपति के दौर पर चार्ल्स डि गॉल ने ही फ्रांस की रणनीतिक स्वतंत्रता की नीति शुरू की थी. उन्होंने ही महाशक्तियों से अलग फ्रांस की संप्रभु परमाणु नीति को आगे बढ़ाया. 1964 में डि गॉल ने कहा था अगर तत्कालीन सोवियत संघ जर्मनी पर हमला करता है तो फ्रांस ख़ुद को ख़तरे में समझेगा. वो कहते थे कि अमेरिकी लोग भी हमारे दोस्त हैं और रूसी भी, लेकिन अमेरिका के अपने हित भी हैं और किसी दिन हमारे हित उनके हित से टकराएंगे.चार्ल्स डि गॉल की वो बात अब सही साबित हो रही है. उनकी ही बात को बाद के सालों में भी फ्रांस के सभी नेता साथी यूरोपियन देशों के साथ दोहराते रहे कि वो अमेरिका पर अपना भरोसा कम करें. फ्रांस लगातार ये संकेत भी देता रहा है कि वो यूरोपीय देशों का सामरिक नेतृत्व कर सकता है, लेकिन बाकी देशों ने इसका कभी कोई जवाब नहीं दिया. बाकी यूरोपीय देश ये संकेत नहीं देना चाहते थे कि उन्हें अमेरिका और नाटो में पूरी तरह विश्वास नहीं है, लेकिन अब जब ट्रंप ने यूरोप की तरफ़ अपनी पीठ कर ली है तो फ्रांस का वो रुख़ सही साबित होता दिख रहा है. इस सबके बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप लगातार कूटनीति के जानकारों को चौंकाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. गुरुवार को उन्होंने कहा कि ये शानदार होगा अगर हर कोई अपने परमाणु हथियारों से मुक्ति पा ले.क्या कम होंगे हथियारट्रंप के इस बयान के बाद रूस ने कहा कि ये ज़रूरी है कि अमेरिका के साथ हथियार नियंत्रण पर बातचीत शुरू की जाए. फरवरी में भी ट्रंप ने कहा था कि परमाणु हथियारों की सीमा तय करने के लिए वो पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बातचीत करना चाहते हैं. हालांकि, उन्होंने इस बातचीत के लिए कोई समय-सीमा नहीं दी, लेकिन ये कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही ये बात शुरू होगी. इस बीच अमेरिका और रूस के बीच परमाणु हथियारों की संख्या तय करने से जुड़ी New START संधि 4 फरवरी 2026 को ख़त्म हो रही है.

Donald Trump Russia China France Europe Fight: फ्रांस का अमेरिका के प्रति एक लंबा अविश्वास रहा है, जो 1956 के स्वेज़ नहर संकट तक जाता है. उस समय अमेरिका ने फ्रांस और ब्रिटेन को सामरिक लिहाज़ से अहम स्वेज़ नहर पर कब्ज़ा करने से रोक दिया था.
Bol CG Desk

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