स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंध के अवसर पर मंत्री केदार कश्यप का शुभकामना संदेश
Quick Feed

चलती रहे ज़िंदगी रिव्यू: जानें कैसी है  इन्द्रनील सेनगुप्ता और बरखा सेन गुप्ता की फिल्म

स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंध के अवसर पर मंत्री केदार कश्यप का शुभकामना संदेश

चलती रहे ज़िंदगी रिव्यू: जानें कैसी है  इन्द्रनील सेनगुप्ता और बरखा सेन गुप्ता की फिल्मकास्ट – मंजरी फ़ड़नीस, सीमा बिस्वास, सिद्धांत कपूर, इन्द्रनील सेनगुप्ता , रोहित खंडेलवाल, बरखा सेन गुप्ता.निर्देशक – आरती एस बागड़ीलेखक – आरती एस बागड़ी, अरुण भुतरा, शाकिर ख़ान. कहानीफ़िल्म की कहानी कोविड काल की है जहां एक बिल्डिंग में लोग अलग अलग ज़िंदगियां जी रहे हैं और कोविड की वजह से सबको घर में बंद रह जाना पड़ता है पर इन बंद दरवाज़ों के बीच इनकी ज़िंदगियों में क्या उथल पुथल मचती है यही इस फ़िल्म में दिखाया गया है. सिद्धांत कपूर का किरदार ग़रीब ब्रेडवाला है पर सबका ख़्याल रखता है लेकिन मजबूरन उसे मुंबई छोड़ना पड़ता है, आरू (बरखा सेनगुप्ता) की ज़िंदगी में तूफ़ान आ जाता है जब उससे पता चलता है की उसका पति उसी बिल्डिंग में है पर कहीं और, किसी और के साथ. कोविड काल की कुछ ऐसी ही ज़िंदगी और घटनाओं पर रोशनी डालती है ये फ़िल्म.ख़ामियां1. ये फ़िल्म कोविड के वक़्त ही शूट हुई है और तब से लेकर अब तक कोविड के इर्द गिर्द घूमती कई कहानी हमने देखी है इसलिए विषय में ताज़गी नहीं रहती.2. अलग -अलग लोगों की अलग-अलग कहानियां है, जिसमें एक परिवार या किरदार की कहानी चलती है फिर ख़त्म होती है कुछ कहानियों के बाद फ़िल्म में दुहराव लगने लगता है. स्क्रीनप्ले इस कमी को बचा सकता था.3. कुछ सीक्वेंस से बचा जा सकता था जैसे मंजरी के डांस के सीक्वेंसेज जो अलग- अलग जगह पर हैं और ज़्यादा हैं. ऐसे कुछ सीक्वेंसेज़ और हैं.खूबियांये फ़िल्म अच्छी नीयत से बनाई गई फ़िल्म है जहां विषय, कहानी और फ़िल्म की कहानी कहने में ईमानदारी बरती गई है. तमाम तरह के रिस्क लेकर अपने पैशन के साथ फ़िल्म बनाना जहां व्यावसायिक दबावों को दरकिनार कर सिर्फ़ फ़िल्म की आत्मा पर ध्यान दिया गया है और बेकार की डायलॉगबाज़ी और गानों से बचा गया है जो की काबिल  ए तारीफ़ है.फ़िल्म की हर कहानी आपको भावनाओं के सफ़र पर ले है जाती है. भले ही शुरुआत में आख़िर की कहानियों में दुहराव नज़र आता है पर जब वो अपने क्लाइमेक्स पर आती है तो भावनाओं को झकझोर जाती हैं.सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है. इंद्रनिल सेनगुप्ता, बरखासेन गुप्ता, मंजरी, सिद्धांत कपूर और सीमा बिस्वास इन सभी का बहुत सधा हुआ अभिनय, सीमा अपने किरदार के साथ कभी कभी चेहरे पर मुस्कुराहट भी बिखेर जाती हैं.निर्देशक आरती के निर्देशन में धार है , भावनात्मक दृश्य हों या फिर वो दृश्य जहां डॉयलॉग्स कम और चेहरे के हाव भाव ज़्यादा हों, ऐसे सभी दृश्यों को ठहराव के साथ उन्होंने शूट किया है और फ़िल्म में रखा है.फ़िल्म  का बैकग्राउंड स्कोर ठीक है और दृश्यों के इमोशंस को बल देता है. साथ ही फ़िल्म के दृश्यों को ख़ूबसूरती के साथ लिखा गया है.अंत में में यही कहूंगा की  ‘ चलती रहे ज़िंदगी ‘ एक संजीदा सिनेमा है जो आपको बासु चटर्जी और हृषीकेश मुखर्जी की फ़िल्मों की याद दिलाता है.स्टार- 3.5   

ये फ़िल्म कोविड के वक़्त ही शूट हुई है और तब से लेकर अब तक कोविड के इर्द गिर्द घूमती कई कहानी हमने देखी है इसलिए विषय में ताज़गी नहीं रहती.
Bol CG Desk

Related Articles

Back to top button