Chhattisgarh Tourism “छत्तीसगढ़ और सूर्य उपासना का संबंध” रिसर्च वेद राजपूत
प्रतिमा: सूर्यदेव (कल्चुरी कालीन 1120-1135 ई.) Chhattisgarh Tourism
स्थल: कोटगढ़ अकलतरा, जिला जांजगीर – चांपा
सूर्य हमारे सौर मंडल के स्वामी माने जाते है, जिसके कारण हमारे हिंदू धर्म में सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व है। Chhattisgarh Tourism
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छत्तीसगढ़ में ऐसा सायद ही कोई क्षेत्र होगा जहां सूर्य की उपासना ना होती होगी। छत्तीसगढ़ में लगभग 1500 वर्ष पुराने सूर्यदेव की प्रतिमा के दर्शन होते है।
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अर्थात छत्तीसगढ़ में भी बिहार और उत्तरप्रदेश की तरह ही सूर्यदेव की उपासना की परंपरा बड़ी प्राचीन है, छत्तीसगढ़ के कुछ बंधु अज्ञानतावश सूर्य उपासना के सबसे बड़े पर्व छठपूजा से खुद को अलग करते हुए, सूर्य उपासना को परायी संस्कृति के रूप में देखते है। Chhattisgarh Tourism
प्रमाणों सहित बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में सूर्य देव की उपासना के सैकड़ों सबूत बिखरे पड़े है।
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- कोटगढ़ अकलतरा:
रतनपुर के राजा रत्नदेव द्वितीय एवं पृथ्वीदेव द्वितीय सामन्त वल्लभराज ने विकर्णपुर (वर्तमान कोटगढ़) में सूर्य के पुत्र रेवन्त का एक मन्दिर बनवाया था।
कोटगढ़ मंदिर के प्रवेश द्वार में भी सूर्य की एक प्रतिमा अंकित की गई है। संभवतः इसके गर्भगृह में वल्लभराज द्वारा निर्मित रेवन्त की प्रतिमा रही होगी। Chhattisgarh Tourism - विष्णु मंदिर जांजगीर: जांजगीर का विष्णु मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है, परंतु इस मंदिर में सूर्य की प्रतिमा पश्चिमी जंघा के मध्य प्रक्षेप के निचले प्रकोष्ठ में निर्मित है।
वर्तमान में इनके चारों हाथ खंडित हैं प्रतिमा स्थानक मुद्रा में हैं। इनके दोनों पार्श्व में दंडित एवं पिंगल का अंकन हैं तथा दोनों पार्श्व में उनकी रानियां राज्ञी तथा निशुभा का अंकन है। सूर्य पैरों में जूते पहने हैं तथा सप्त अश्वारूढ़ रथ पर विराजमान है। उनके सारथी अरुण का अंकन भी दृष्टव्य है। Chhattisgarh
3.खरौद का सूर्य मंदिर: प्राचीन काल में खरौद में भी एक सूर्य मंदिर अवस्थित था। रत्नदेव तृतीय के खरोद शिलालेख से पता चलता है कि इनके महामंत्री गंगाधर ने पहपक नामक स्थान पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था, जिसमें मुख्य देवता के रूप में सूर्य की प्रतिमा स्थापित रही होगी। Chhattisgarh
बिलासपुर:
4.तालागांव: बिलासपुर जिला के अंतर्गत आने वाले पुरातात्विक स्थल तालागांव में सूर्य का अंकन नवग्रह पट्टों में दिखाई देता है। यह नवग्रह पट्ट देवरानी मंदिर के गर्भगृह में स्थित है। छत्तीसगढ़ में सबसे प्राचीन सूर्यदेव का अंकन यही से प्राप्त होता है। Chhattisgarh
- गनियारी में स्थित शिव मंदिर के जंघा भाग में चतुर्भुजी सूर्य की स्थानक प्रतिमा प्रदर्शित है। प्रतिमा के दोनों हाथ क्षरित है। यज्ञोपवित धारण किए हुए, सिर में किरीट मुकुट, कर्ण कुण्डल, वक्षमाला, कटि मेखला पहने हुए यह प्रतिमा अलंकृत है। नीचे सात अश्वों का समूह संभवतः रहा होगा परंतु वर्तमान में केवल दो अश्व ही दिखाई देते है।
- मल्हार से सूर्य की दो प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। पहले प्रतिमा में सूर्य उदीच्य वेश में दोनों हाथों में सनाल कमल लिए हुए, स्थानक मुद्रा में प्रदर्शित किए गए है। यह प्रतिमा दसवीं शताब्दी ईसवी की मानी गई है।
- किरारी गोढ़ी के प्राचीन शिव मंदिर के पूर्वी भित्ति के मध्यरथ में निचली भित्ति के आलिंद में सूर्य प्रतिमा प्रदर्शित है। यह द्विभुजी प्रतिमा, समपाद स्थानक मुद्रा में स्थित है।
8.कोरबा: पाली के शिव मंदिर में भी सूर्य की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गई है।
- सारंगढ़: पृथ्वीदेव द्वितीय के डेकोनी , बिलाईगढ़ तथा घोटिया से प्राप्त ताम्रपत्रों में सूर्य का गुणगान किया गया है तथा इन लेखों में सूर्य को ज्योर्तिमय, आदिपुरूष तथा मनु के पिता के रूप में उल्लेखित किया गया है।
- बलौदाबजार: नारायणपुर ग्राम के शिव मंदिर के उत्तर दिशा की जंघाभाग की दीवार में नीचे के देव कोष्ठ में वेशधारी सूर्य की प्रतिमा उत्कीर्ण है। डमरू ग्राम से भी सूर्य की प्रतिमा प्राप्त हुई है।
सूर्य की उपासना भारत के साथ साथ विश्व की अनेक संस्कृतियो में नजर आता है। छत्तीसगढ में भी 1500 वर्ष पूर्व के प्रणाम आज भी मौजूद है। यहां भी प्राचीन काल से ही सूर्य पूजा की परंपरा रही है।सभी समाज के लोग बड़े ही सद्भाव से सूर्य उपासना का पर्व मानने लगे तो हमारी भारतीय संस्कृति को और अधिक मजबूती मिलेगी।
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