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“प्रेरित करती है उनकी यात्रा…” : ISRO प्रमुख ने की भारत के एकमात्र अंतरिक्ष यात्री की तारीफ

“प्रेरित करती है उनकी यात्रा…” : ISRO प्रमुख ने की भारत के एकमात्र अंतरिक्ष यात्री की तारीफ

ऐतिहासिक उड़ान की 40वीं वर्षगांठ मना रहे देश के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने कहा कि भारत अभी भी “सारे जहां से अच्छा” है. भारत के चार यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने के देश के नए प्रयास से जुड़े 75 साल के राकेश शर्मा ने कहा कि वो एक बार फिर अंतरिक्ष में जाना पसंद करेंगे, लेकिन इस बार सिर्फ एक पर्यटक के रूप में.राकेश शर्मा ने एनडीटीवी को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहा, ”मैं इस बार बस अंतरिक्ष यान की खिड़की से, अंतरिक्ष से धरती मां के नज़ारे का आनंद लेना चाहता हूं.”आज, जब भारत मिशन गगनयान के हिस्से के रूप में अपनी पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान की तैयारी कर रहा है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भी 40 साल पहले के उस सुनहरे पल को याद कर रहा है.अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष एस सोमनाथ, जो उस समय 21 साल के थे, उन्होंने कहा, “स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा ने न केवल भारत को प्रेरित किया, बल्कि मानव प्रयास की असीम क्षमता का भी प्रतीक बनाया.”एस सोमनाथ ने कहा, ”ऐतिहासिक अंतरिक्ष उड़ान की इस 40वीं वर्षगांठ पर, आइए हम उनकी उल्लेखनीय उपलब्धि और भारतीय अंतरिक्ष अन्वेषण पर छोड़ी गई अमिट छाप का सम्मान करने के लिए कुछ समय निकालें.”3 अप्रैल, 1984 को इतिहास रचा गया था, जब स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा ने सोवियत रूस के एक रॉकेट पर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी और भारत के पहले गगनयात्री बने. वो सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन पर 7 दिन और 21 घंटे तक रहे.दूरदर्शन से हर घर में प्रसारित तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनकी बातचीत ने देश को रोमांचित कर दिया था. उनके सवाल “ऊपर से भारत कैसा दिखता है”? राकेश शर्मा ने अलामा इकबाल की प्रसिद्ध पंक्ति “सारे जहां से अच्छा” के साथ जवाब दिया था. राकेश शर्मा ने एनडीटीवी को बताया कि ये जवाब कोई सोचा-समझा नहीं था, स्कूल में हमेशा ये गीत गाते थे, इसलिए ये जवाब स्वाभाविक रूप से आया.इसरो अब अपने मिशन गगनयान के हिस्से के रूप में श्रीहरिकोटा से नामित चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक को अंतरिक्ष में भेजने की उम्मीद कर रहा है. रॉकेट भारतीय होगा और जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “इस बार, उलटी गिनती भी हमारी होगी.”ग्रुप कैप्टन रवीश मल्होत्रा ने राकेश शर्मा के साथ प्रशिक्षण लिया था और एक स्टैंडबाय अंतरिक्ष यात्री थे, उन्होंने कभी अंतरिक्ष में उड़ान नहीं भरी. अब वो 81 साल के हो गए हैं, उन्होंने बेंगलुरु में भारत की सबसे वाइब्रेंट एयरोस्पेस कंपनियों में से एक, डायनेमैटिक टेक्नोलॉजीज बनाने में मदद की.राकेश शर्मा ने कहा, “मुझे अंतरिक्ष में जाने के लिए चुने जाने का सौभाग्य मिला. मैं इस बात पर जोर देकर फिर से कहना चाहता हूं कि ये सरासर सौभाग्य था, और वो केवल मेरे हिस्से में था. क्योंकि मेरे सहकर्मी रवीश सर और मेरे बीच, मैं किसी विशेष गुण का दावा नहीं कर सकता.”राकेश शर्मा अब इसरो को गगनयान मिशन के लिए नामित चार अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने में मदद करते हैं. उन्होंने अपनी उड़ान से पहले योग का प्रशिक्षण लिया था और इसे लगभग शून्य गुरुत्वाकर्षण स्थिति में किया था. इस अभ्यास के कारण उन्हें “विश्व का पहला अंतरिक्ष योगी” उपनाम मिला.उन्होंने कहा, “शुद्धतावादियों को मेरे द्वारा किया गया योग अनुभवहीन लगेगा, लेकिन इसे भारहीन स्थिति में करना आसान नहीं है और योगी को अंतरिक्ष में रखने के लिए एक गुणवत्तापूर्ण हार्नेस की आवश्यकता होती है.”इसरो के सूत्रों ने कहा कि योग अब “फैबुलस फोर” की दिनचर्या का हिस्सा है, जैसा कि गगनयात्री पदनामों को अक्सर कहा जाता है. सोमनाथ ने कहा कि राकेश शर्मा “गगनयान के विकास के समर्थक, प्रवर्तक और सलाहकार” रहे हैं.सोमनाथ ने कहा, “मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता विकसित करने के लिए राकेश शर्मा कई तरीके से इसरो का सहयोग करते हैं. वो भारत के लिए अग्रणी गगनयात्री हैं, मिशन गगनयान के हिस्से के रूप में चार उम्मीदवार उनके नक्शेकदम पर चल रहे हैं.”राकेश शर्मा ने कहा कि वो उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जब उन्हें “यूनिवर्स गेजर्स” के उस विशिष्ट क्लब में एक भारतीय का साथ मिलेगा.

3 अप्रैल, 1984 को इतिहास रचा गया था, जब स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा ने सोवियत रूस के एक रॉकेट पर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी और भारत के पहले गगनयात्री बने. वो सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन पर 7 दिन और 21 घंटे तक रहे.
Bol CG Desk

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