सतारा में दिलचस्प मुकाबला; एक तरफ शरद पवार का करीबी तो दूसरी तरफ छत्रपति शिवाजी के वंशज, किसे चुनेगी जनता?
सतारा में दिलचस्प मुकाबला; एक तरफ शरद पवार का करीबी तो दूसरी तरफ छत्रपति शिवाजी के वंशज, किसे चुनेगी जनता?Satara Lok Sabha seat : महाराष्ट्र की सतारा सीट पर एक तरफ छत्रपति शिवाजी के वंशज हैं और दूसरी तरफ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) संस्थापक शरद पवार के करीबी चुनाव लड़ रहे हैं. सतारा से सांसद बनने की होड़ में लगे दोनों उम्मीदवारों का कहना है कि क्षेत्र में आम आदमी के लिए नौकरियां तथा शिक्षा जैसे जमीनी स्तर के मुद्दे मायने रखते हैं. राकांपा (शरदचंद्र पवार) नेता शशिकांत शिंदे के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मराठा शासक के 13वें वंशज उदयनराजे भोसले को उम्मीदवार बनाया है.भोसले ने कहा, ‘‘मैंने कभी भी चुनाव में या अपने जीवन में छत्रपति शिवाजी के नाम का इस्तेमाल नहीं किया. मैं एक आम आदमी की तरह रहता हूं.” पूर्व विधायक शिंदे के मुताबिक, सतारा में मतदाता चाहते हैं कि उनका प्रतिनिधित्व एक आम व्यक्ति करे. उन्हें शरद पवार पर भरोसा है, जो एक मजबूत राजनीतिक खिलाड़ी बने हुए हैं और अभी भी प्रतिद्वंद्वियों को मात देने में सक्षम हैं.शिंदे ने कहा, ‘‘नयी पीढ़ी को एक औद्योगिक केंद्र, बेहतर शिक्षा, आईटी पार्क और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है. यहां हजारों गन्ना किसान हैं लेकिन केंद्र द्वारा चीनी निर्यात पर प्रतिबंध ने उन्हें नाराज कर दिया है.”सतारा संसदीय क्षेत्र में तीसरे चरण में सात मई को मतदान होना है. इसका नाम इस क्षेत्र के सात किलों पर आधारित है. इसमें कराड उत्तर, सतारा, कराडा दक्षिण, पाटन, कोरेगांव और वाई विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. शिवाजी के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य की राजधानी के रूप में सतारा का गहरा ऐतिहासिक संबंध है. यह क्षेत्र मराठों और विदेशी आक्रमणकारियों के बीच कई लड़ाइयों का स्थल भी रहा है.राज्य के चीनी बेल्ट में स्थित इस निर्वाचन क्षेत्र में नौकरियों की कमी और खराब औद्योगिक और शैक्षिक बुनियादी ढांचे प्रमुख मुद्दे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि हजारों युवा बेहतर शिक्षा के लिए पुणे या मुंबई जाते हैं. वर्ष 2019 में, भोसले ने अविभाजित राकांपा के उम्मीदवार के रूप में लगातार तीसरी बार सतारा सीट जीती, लेकिन कुछ महीनों के भीतर इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. आगामी उपचुनाव में वह भाजपा उम्मीदवार के रूप में राकांपा के श्रीनिवास पाटिल से हार गए.कहा जाता है कि सतारा में बारिश में भींगकर भाषण देते हुए 79 वर्षीय शरद पवार की तस्वीर ने पाटिल की जीत सुनिश्चित कर दी और उस साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राकांपा की किस्मत बदल दी. तब से बहुत कुछ बदल चुका है. राकांपा में एक बड़ा विभाजन देखने को मिला. मूल पार्टी के एक धड़ा का नेतृत्व महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार कर रहे हैं. यह गुट भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति का घटक है, जिसमें मूल शिवसेना का एक धड़ा भी है.शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा (शरदचंद्र पवार) विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाड़ी (एमवीए) का हिस्सा है, जिसमें शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस भी शामिल हैं. परंपरागत रूप से सतारा कांग्रेस का गढ़ था, कुछ वर्षों तक शिवसेना ने भी इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. 1999 में जब शरद पवार ने कांग्रेस से नाता तोड़कर राकांपा का गठन किया, तो यह उनकी पार्टी का मजबूत आधार बन गया.वर्तमान में राज्यसभा सदस्य भोसले ने इस धारणा को खारिज कर दिया कि उनकी पिछली जीत के पीछे शरद पवार की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अपने बलबूते जीत हासिल की, किसी के नाम पर नहीं. आप यहां किसी से भी पूछ सकते हैं. मैंने जो काम किया, उसके कारण लोगों ने मेरी जीत सुनिश्चित की.”भोसले ने कहा कि जब वह लोगों से मिलते हैं तो उन वादों के बारे में बात करते हैं, जो उन्होंने पूरे किये हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने पिछले पांच वर्षों में लगभग 10,000 करोड़ रुपये का काम कराया है.” महाराष्ट्र में भाजपा के प्रचार अभियान का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया है, जिनमें भारी भीड़ उमड़ी है.कुछ मतदाताओं ने राकांपा द्वारा कराए गए कार्यों पर सवाल उठाया और उम्मीद जताई कि भोसले उनके मुद्दों को हल करने में सक्षम होंगे. कई लोग अपने विचार व्यक्त करने से झिझक रहे थे. अधिकतर लोग इस बात से सहमत थे कि सतारा में अपने ऐतिहासिक जुड़ाव के कारण पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, हालांकि इसका अभी तक फायदा नहीं उठाया जा सका है.शिंदे के मुताबिक, सतारा से काफी लोग सशस्त्र बलों में हैं. उन्होंने कहा, ‘‘कुछ गांवों में हर घर का एक सदस्य सेना में है, लेकिन पुलिस या सेना में कोई नयी भर्ती नहीं हो रही है. हमारे लड़कों के पास अग्निवीर (जो चार साल तक सशस्त्र बलों में सेवा करते हैं) के रूप में भर्ती होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इसलिए लोग नाराज हैं.”शिंदे ने अविभाजित राकांपा के सदस्य के रूप में 2009 और 2014 में सांगली जिले के अंतर्गत आने वाले कोरेगांव विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं एक आदर्श शहर बनाना चाहता हूं. लोगों ने राज्य विधानसभा में मेरा काम देखा है. मैंने उनके साथ हुए अन्याय के बारे में बात की है. अब, मैं उनकी समस्याओं को संसद में उठाने की कोशिश करूंगा.” इस निर्वाचन क्षेत्र में 16 उम्मीदवार मैदान में हैं और 18.6 लाख पात्र मतदाता हैं. महाराष्ट्र की 48 सीट के लिए लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल से 20 मई तक पांच चरण में हो रहे हैं और मतगणना चार जून को होगी. राज्य में इस साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं.