Jyotiba Phule : रायपुर के पुरानी बस्ती में सर्व समाज ने मिलकर मनाई जयंती
महात्मा Jyotiba Phule का पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले (Jyotirao Govindrao Phule) था. उन्हें “महात्मा फुले (Mahatma Phule)” के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिबा फुले एक महान भारतीय विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और दार्शनिक थे।
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को सतारा जिले के उनके पैतृक गांव कटगुन (Katgun) में एक माली परिवार में हुआ था. उनकी माता का नाम चिमनबाई (Chimanbai) और पिता का नाम गोविन्दराव (Govindrao) था।
वह एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जहां पढ़ना-लिखना तो दूर की बात थी. उनका परिवार कई पीढ़ियों पहले माली का काम करता था। उनका परिवार फूलों से गजरे आदि बनाता था, इसलिए उन्हें “फुले” उपनाम से एक नई पहचान मिली और वे इसी नाम से जाने गए।
Jyotiba Phule जब केवल नौ महीने के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया. उनकी मां की मृत्यु के बाद, उनके पिता ने उनकी देखभाल की।
Jyotiba Phule का बचपन
Jyotiba Phule बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा मराठी माध्यम से और माध्यमिक शिक्षा स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल से पूरी की। शालेय जीवन में उनकी प्रतिष्ठा एक अनुशासित होशियार छात्र के रूप में थी।
प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होंने कुछ समय तक सब्जी बेचने का व्यवसाय भी किया। 1840 में 13 साल की उम्र में ज्योतिबा का विवाह अनपढ़ सावित्रीबाई (Savitribai) से हुआ था। लेकिन सावित्रीबाई अनपढ़ होते हुए भी शिक्षा के महत्व को समझती थीं। सावित्रीबाई अपने पति के हर सामाजिक कार्य में सक्रिय रूप से सहयोग करती थीं, उनका यह सहयोग एक बड़े बदलाव को दर्शाता था।
एक बार Jyotiba Phule अपने उच्च जाति के मित्र के विवाह में गए थे, जब बारातियों को पता चला कि वे माली जाति के हैं, तो उन्होंने ज्योतिबा का न केवल अपमान किया, बल्कि उन्हें बाहर जाने के लिए भी कहा।
उन्हें यह कहकर बुरी तरह अपमानित किया गया की, “पढ़-लिखकर भी तुम नीची जाति के हो, इसलिए नीच ही रहोगे”। इस घोर अपमान ने उन्हें भीतर तक झकझोर कर रख दिया।
ज्योतिबा को उस दिन सामाजिक असमानता की गंभीरता का एहसास हुआ, जहां जाति और पंथ के नाम पर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव होता है।
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वह अब अच्छी तरह से समझ चुके थे कि इस संकीर्ण विचारधारा ने ही भारतीय धर्म को पतन की ओर धकेल दिया है। तब उन्होंने सामाजिक बुराइयों से लड़कर मानवता के उत्थान का दृढ़ संकल्प लिया और इस बुराई को दूर करने से पहले अपने बारे में सोचना भी पाप है, ऐसा संकल्प लेकर वे उसे पूरा करने में जुट गए।
महात्मा फुले अंग्रेजी-अमेरिकी दार्शनिक थॉमस पेन (Thomas Paine) की पुस्तक “The Rights of Man” से बहुत प्रभावित थे और उनका मानना था कि सामाजिक बुराइयों से निपटने का एकमात्र समाधान महिलाओं और निचली जातियों के सदस्यों की शिक्षा है। वे सामाजिक न्याय के विचार से प्रभावित थे।
Jyotiba Phule जानते थे कि देश और समाज की वास्तविक उन्नति तब तक नहीं हो सकती जब तक देश का प्रत्येक नागरिक जात-पात की बेड़ियों से मुक्त नहीं हो जाता साथ ही देश की महिलाओं को समाज के हर क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त नहीं हो जाते।
इसलिए उन्होंने असमानता को खत्म करने के लिए महिलाओं की शिक्षा और पिछड़ी जाति के लड़के-लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देने का फैसला किया।
उस समय महाराष्ट्र में जाति व्यवस्था बहुत ही भीषण रूप में प्रचलित थी. समाज में महिलाओं की स्थिति दयनीय थी, लोग महिलाओं की शिक्षा के प्रति उदासीन थे, ऐसे में ज्योतिबा फुले ने समाज को इन बुराइयों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाया।
शिक्षा पर सबका अधिकार
वे पढ़ने-लिखने को अभिजात्य वर्ग का अधिकार नहीं मानते थे। उन्होंने सर्वप्रथम महाराष्ट्र में नारी शिक्षा (Female education) और अस्पृश्यता उन्मूलन (Eradication of untouchability) का कार्य प्रारंभ किया।
1 जनवरी 1848 को उन्होंने पुणे के बुधवार पेठ में भिडे वाडा में लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल शुरू किया और शिक्षक की जिम्मेदारी सावित्रीबाई को सौंपी। उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने उनके सामाजिक कार्यों में हर कदम पर उनका साथ दिया।
दोनों ने आस-पड़ोस की लड़कियों को इकट्ठा करके लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य शुरू किया। महात्मा फुले पहले भारतीय थे जिन्होंने स्वतंत्र रूप से विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक स्कूल की स्थापना की।
कुछ सामाजिक तत्वों ने इसका जमकर विरोध किया और उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई, लेकिन दंपति अपनी मुहिम पर अड़े रहे।
नारी शिक्षा के लिए विशेष पहल
उन्होंने नारी शिक्षा की आवश्यकता और उपयोगिता से संबंधित अनेक भाषण दिए, लेख लिखे। दोनों के इस अनोखे उत्साह से कन्या शाला जोर-जोर से चलने लगी. अंग्रेजों ने महाराष्ट्र में महिला शिक्षा के इस व्यापक प्रसार का स्वागत किया और इस पहल में सहयोग भी दिया।
बाद में ज्योतिबा फुले ने अछूतों के लिए भी विद्यालयों की स्थापना की।
एक गर्भवती विधवा की दुर्दशा को देखते हुए, Jyotiba Phule ने विधवा पुनर्विवाह की वकालत की और 16 जुलाई, 1856 को ब्रिटिश सरकार द्वारा हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 को वैध कर दिया गया।
इन प्रमुख सुधार आंदोलनों के अतिरिक्त Jyotiba Phule द्वारा हर क्षेत्र में छोटे-छोटे आंदोलन चलाए जा रहे थे। जिससे लोगों को सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर गुलामी से मुक्ति मिली. लोगों में नए विचार, नई सोच की शुरुआत हुई, जो आजादी की लड़ाई में उनकी ताकत बनी।
इन सब बातों से मिले विरोधाभासों और अपमानों ने उन्हें यह महसूस कराया कि समाज को धार्मिक अंधविश्वासों से मुक्त करना होगा। इसलिए उन्होंने ऐसे समतावादी, “सत्यशोधक” समाज की आधारशिला रखी, जिसकी पहुंच आम जनता तक हो, जिसका आधार विज्ञान था।
महात्मा फुले ने अपने सहयोगियों और अनुयायियों के साथ 24 सितंबर 1873 को पुणे, महाराष्ट्र में अछूतों की मुक्ति के लिए “सत्यशोधक समाज (Satyashodhak Samaj)” की स्थापना की।
इस संगठन का महान उद्देश्य समाज के पीड़ितों को न्याय दिलाना और जातिगत भेदभाव और छुआछूत को मिटाना और शिक्षा के माध्यम से एक महान समाज का निर्माण करना था।
महात्मा फुले का लेखन और पठन प्रखर था। उनकी पुस्तकें “सार्वजनिक सत्यधर्म (Sarvajanik Satyadharma)” और “गुलामगिरी (Gulamgiri)” बहुत प्रसिद्ध हैं. उनकी प्रतिभाशाली लेखन शैली से पता चलता है कि वे कितने महान विचारक और लेखक थे।
उन्होंने उस समय के भारतीय युवाओं से आवाहन किया की कि वे देश, समाज और संस्कृति को सामाजिक बुराइयों और अशिक्षा से मुक्त करें और एक स्वस्थ, सुंदर और मजबूत समाज का निर्माण करें।
निस्संदेह Jyotiba Phule ने उस समय धार्मिक रूढ़िवादिता से दूर एक ऐसे समाज की परिकल्पना की थी। जो ज्ञान का प्रकाश दे सके।
उनकी इस गरिमा को देखते हुए, ज्योतिराव गोविंदराव फुले को 11 मई, 1888 को महाराष्ट्रीयन सामाजिक कार्यकर्ता विठ्ठलराव कृष्णजी वाडेकर (Vitthalrao Krishnaji Wadekar) द्वारा “महात्मा (Mahatma)” की उपाधि दी गई थी। Jyotiba Phule
महाराष्ट्र में समाज सुधार के जनक माने जाने वाले महात्मा फुले ने जीवन भर समाज सुधार के लिए कार्य किया। ज्योतिबा का मानना था कि मनुष्य के लिए समाज सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है, इससे बढ़कर ईश्वर की कोई सेवा नहीं है।
महात्मा Jyotiba Phule जयंती के अवसर पर मरार , माली ,सैनी, कुशवाहा महासभा छत्तीसगढ़, द्वारा महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती मनाई गई। इस अवसर पर फुले दंपत्ति को भारत रत्न प्रदान करने एवं जयंती के दिन अवकाश की मांग के लिए आज राज्यपाल को ज्ञापन दिया गया I जिसमें समाज के प्रतिनिधि मंडल शामिल हुए I महासभा के प्रदेश अध्यक्ष श्री राजेन्द्र नायक पटेल सहित अन्य प्रतिष्ठित सदस्य शामिल हुए Iहेमंत सैनी, योगेश कश्यप, शीतल सैनी, राम प्रवेश मौर्य, मनोज सैनी, विनोद सैनी, शिवनारायण पटेल, खेल सिंह नायक और अन्य उपस्थित थे।
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