स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं - मान. केदार कश्यप, कैबिनेट मंत्री
Quick Feed

कश्मीर डायरी: आर्टिकल 370 हटने पर आया बदलाव महिलाओं के लिए कितना फायदेमंद? उन्हीं की जुबानी

कश्मीर डायरी: आर्टिकल 370 हटने पर आया बदलाव महिलाओं के लिए कितना फायदेमंद? उन्हीं की जुबानी जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से 1 अक्टूबर तक, तीन चरणों में विधानसभा चुनाव (Jammu-Kashmir Assembly Election 2024) होने हैं. आगामी चुनावों को लेकर यहां के लोग काफी उत्साहित हैं. हों भी क्यों न करीब 10 साल बाद विधानसभा चुनाव जो होने जा रहे हैं. खास उमंग महिला वोटरों में देखने को मिल रही है. इसकी वजह यह है कि महिलाएं अपना नाम जम्मू-कश्मीर के इतिहास में दर्ज करवाने का मन बना चुकी है. राज्य की महिलाएं (Kashmir Women Voters) पहले के मुकाबले आज ज्यादा आज़ाद और बेख़ौफ़ महसूस कर रही है. अब वो न सिर्फ़ राजनीति में अपनी पहचान दर्ज करवाने को बेताब हैं बल्कि अपने हक़ और अपने हिस्से के रोज़गार के लिए भी संघर्ष करती हुई भी नजर आ रही हैं. ये भी पढे़ं-कश्मीर डायरी : घाटी में चल रही है किसकी ‘हवा’, वोटर के मन में आखिर है क्याहर दल का महिलाओं पर खास फोकसपीडीपी की इल्तिजा मुफ़्ती ख़ुद भी महिलाओं के हक़ के लिए कई बार आवाज़ उठाती हुई सुनाई देती रही हैं. हाल ही में एक चुनावी जनसभा में वह राजनीतिक गलियारों में महिलाओं की कम भागीदारी को लेकर आवाज उठाती बुलंद करती दिखी. एनडीटीवी की चुनावी डायरी भी कई महिलाओं से मिली, जिन्होंने खुल कर कहा की अब वो अपने हिस्से के लिए लड़ने से डरती नहीं हैं. “हम अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ रहे है और अपनी जगह ख़ुद बना रहे है. पहले जम्मू-कश्मीर के कोर्ट्स में कम महिलाएं दिखाई पड़ती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब हर अदालत चाहे, निचली हो या हाई कोर्ट वुमन लेयर हर जगह दिख जाएगी.” ये बात जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट वुमन लॉयर एसोसिएशन की प्रेसिडेंट हीना लोन ने NDTV से सही. आर्टिकल 370 हटने के फायदे या नुकसान?दरअसल घाटी ने जिस कदर की तबाही देखी है उसके चलते यहां का युवा वर्ग हालात को लेकर बहुत अवगत रहता है, जिनमें महिलाएं कुछ ज़्यादा ही अप-टू-डेट रहती हैं. इन महिलाओं ने आर्टिकल 370  हटने पर ख़ुशी भी जताई. उनका कहना है कि इससे उनके समाज में कुछ ऐसे बदलाव भी आए हैं, जिनसे वह सहमत नहीं हैं. अब लोग डल झील के आसपास शराब पीते मिल जाते हैं, जब कि पहले ऐसा नहीं था. अब प्रशासन ने जगह-जगह शराब की दुकानें खोल दी हैं. ये दुकानें इस बार के रोज़ों में भी खुली हुई थी, ये बात वकील आरती गुप्ता ने कही. कश्मीर घाटी में जिस तरह पब्लिक सेफ्टी एक्ट को लेकर प्रशासन का रुख़ रहा है उसे लेकर भी क़ानून की जानकर नौजवान लड़कियां कुछ सवाल उठा रही हैं.”पत्थरबाज़ी कम हुई है, ये हक़ीक़त है. लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि पीएसए के मामले भी बढ़ें है.” ये वकील सकीना की चिंता है. घाटी में युवा वोटर्स पर खास फोकसघाटी में हर दल इन दिनों युवा पीढ़ी के बारे में कुछ न कुछ कहता दिखाई दे रहा है, क्यों कि यहां युवा वर्ग की तादाद अच्छी खासी है. नेशनल कॉन्फ़्रेंस और पीडीपी दोनों का ही कहना है कि सरकार बनते ही वो पीएसए क़ानून को ख़त्म कर देंगे. विशेष राज्य के दर्जे को लेकर भी युवा पीढ़ी अपनी अवाज उठा रही है. मीर फरहाद का कहना है कि ” हमारी पहचान हमारा स्वाभिमान था. हमारे राज्य में उसे डाउनग्रेड कर दिया गया. हमें उम्मीद है कि नई सरकार उसे बहाल करेगी और केंद्र अपने वादे पूरे करेगा.”क्या है घाटी की पहली फुटबॉलर की राय?एनडीटीवी ने घाटी की पहली फुटबॉलर से भी बात की. उससे मिलकर पता चला कि घाटी की फिजा में वाकई ये बदलाव महिलाओं के लिए कितना फायदेमंद है. उसने कहा, ” मैं बदलते हुए चेहरे का एक उदाहरण हूं. पहले मां- बाप अपने बच्चों को बाहर भेजने से डरते थे,लेकिन अब ऐसा नहीं है. अफ़शां आशिक़ ने कहा कि दिलचस्प बात है कि जो लड़की आज इतनी खुली अवाम में बोल रही है. वह कुछ साल पहले पुलिस वालों पर पथर फेंकती हुई दिखाई देती थी. जम्मू-कश्मीर में कितनी महिला वोटर्स?सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में करीब 42 लाख महिला वोटर्स हैं. इनमें से करीब 20 लाख वोटर्स 20-29 साल की है और 4 लाख फर्स्ट टाइम वोटर हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक़ 18 से 19 साल की उम्र के युवा मतदाताओं की संख्या में 45,964 की वृद्धि हुई है, जिनमें से 24,310 महिलाएं हैं, जबकि महिला मतदाताओं की कुल संख्या में भी 51,142 की वृद्धि हुई है.

जम्मू-कश्मीर चुनाव (Jammu Kashmir Elections) से पहले घाटी की महिलाओं के मन में क्या है, ये उन्होंने NDTV के सामने खुद बयां किया है.जिस तरह पब्लिक सेफ्टी एक्ट को लेकर प्रशासन का रुख़ रहा है उसे लेकर भी क़ानून की जानकर नौजवान लड़कियां कुछ सवाल उठा रही हैं.
Bol CG Desk (L.S.)

Related Articles

Back to top button