स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंध के अवसर पर मंत्री केदार कश्यप का शुभकामना संदेश
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पंखराज साहेब बाबा कार्तिक उरांव (Kartik Uranav) , डिलिस्टिंग हो कर रहेगा पढ़ें वे कौन थे

स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंध के अवसर पर मंत्री केदार कश्यप का शुभकामना संदेश

भारत। पंखराज साहेब बाबा कार्तिक उरांव (Kartik Uranav) का जन्म 29 अक्टूबर 1924 को झारखंड राज्य के गुमला जिला के करौंदा लिटाटोली ग्राम में हुआ । इनके पिता का नाम स्व. जायरा उराँव एवं माता का नाम स्व. बिरसी उराँव था।  इन्होंने प्राथमिक एवं उच्च माध्यमिक शिक्षा गुमला जिला में प्राप्त कर आइ.एस.सी. की पढ़ाई पटना के साइंस कॉलेज में पूरी की । तदुपरांत इंजीनियरिंग की पढ़ाई बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज पटना से की । 

वे 1950-52 में बिहार सरकार के सिंचाई विभाग में सहायक अभियंता के रूप में कार्यरत रहे । इंजीनियरिंग की स्नातकोत्तर परीक्षा लंदन के विश्वविद्यालय से पास की । सितंबर 1955 से 1958 तक, ब्रिटिश रेल्वे में  तकनीकी सहायक तथा ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट कमिशन, लंदन में वरीय तकनीकी सहायक आदि पदों पर भी कार्य किए । 1958 से 1961 तक विश्व के तत्कालीन सबसे बड़े आण्विक विद्युत गृह, हींकले पॉइंट अटामिक पावर स्टेशन में डिजाइनर के गरिमामय पद पर रहकर आपने कार्य किया ।

(Kartik Uranav)

विदेश से वापस लौटने पर डॉ. कार्तिक उरांव मई 1961 से दिसंबर 1961 तक एच.ई.सी., रांची के वरीय इंजीनियर(डिजाइन) रहे । 1962 के लोकसभा चुनाव में आप लोहरदगा संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी रहे पर विजयी नहीं हो सके ।  1962 से 67 तक फिर से एच.ई.सी. में उप मुख्य अभियंता के रूप में कार्यरत रहे । 1967 से 1977 तक आपने संसद में लोहरदगा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया । 1977 से 1980 तक आप बिहार विधान सभा में विधायक भी रहे ।

1980  में तीसरी बार लोहरदगा के सांसद निर्वाचित हुए । भारत सरकार में पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन विभाग में राज्य मंत्री (9 जून 1980 तक) और 8 दिसंबर 1981, मृत्युपर्यंत  संचार राज्य मंत्री रहे। दिनांक 8 दिसंबर 1981 को संसद  के शीतकालीन सत्र में भाग लेने पहुंचे। वे संसद भवन में ही अचानक अस्वस्थ हो गए और हृदयगति रुकने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

महत्वपूर्ण योगदान :-

वर्ष 1963 में पौराणिक पारंपरिक सामाजिक शासन व्यवस्था “पड़हा” का पुनर्गठन एवं पड़हा पत्रिका का सम्पादन आपके द्वारा हुआ । 1967-68 में रांची में सरहूल पुजनोत्सव एवं झांकी निकालने की परंपरा का शुभारंभ किया । जनजाति समाज के सांस्कृतिक उत्थान एवं उनकी पहचान को सुदृढ़ करने की दृष्टि से आपने कई कदम उठाए । सांस्कृतिक  नृत्य और संगीत को उसके पारंपरिक गरिमा के साथ सुरक्षित रखने और संवर्धन करने के लिए युवा युवतियों को प्रोत्साहित करते थे । वे कहते थे, “ जे नाची से बाची” ।  समाज ने डॉ कार्तिक उरांव जी को “पंखराज साहेब” नामक उपाधि दी क्योंकि  उन्होंने अपने जीवन की समस्त कठिनाइयों से जूझते हुए, कड़े संघर्ष के बावजूद अनुसूचित जनजाति समाज की सुरक्षा एवं उत्थान के लिए सातत्य के साथ काम किया ।

सराहनीय पहल :

वे धर्मांतरण के सख्त खिलाफ थे । उनका मानना था कि अंग्रेज 150 वर्ष तक के अपने शासन काल में भोले-भाले जनजातियों का जितना धर्मांतरण नहीं कर पाए थे, उससे अधिक आजादी के 25 वर्षों में प्रलोभन, लोभ -लालच देकर अनुसूचित जनजातियों को ईसाई बनाया गया। अनुसूचित जनजातियों की परंपरा, रीति-रिवाज, संस्कृति की रक्षा एवं धर्मांतरण से इनके बचाव के लिए लोकसभा में उन्होंने 10 जुलाई 1967 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक 1967 प्रस्तुत किया । विचार विमर्श के लिए भारत सरकार ने इस विधेयक को सयुक्त संसदीय समिति  गठन कर उसे सुपुर्द किया ।

संयुक्त संसदीय समिति ने बहुत छानबीन के बाद 17 नवंबर 1969 को लोकसभा में यह सिफ़ारिश पेश किया । “कंडिका- 2 में निहित बातों के होते हुए कोई भी व्यक्ति जिसने जनजाति आदिमत और विश्वासों का परित्याग कर दिया हो और ईसाई या इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया हो, वह अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा ।“ लेकिन कुछ विदेशी धर्मावलंबियों के दवाब में आकर यह सिफारिश ठंडे बस्ते में पड़ा रहा । फिर डॉ कार्तिक उरांव जी के भगीरथ प्रयास से दो वर्षों के बाद दिनांक 10 नवंबर 1970 तक उन्होंने अनुसूचित जति एवं अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक के समर्थन में 348 सांसदों का हस्ताक्षर युक्त स्मार पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को सौंपा । 16 नवम्बर 1970 को लोकसभा में बहस शुरू हो गई पर ऐसी मान्यता है कि विदेशी तत्वों के  दवाब में आकार अनुसूचित जनजातियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए लोकसभा में प्रस्तुत किया अति महत्वपूर्ण विधेयक बिना बहस के सदन के पटल से हटा दिया गया। न्याय की उम्मीद लगाकर बैठे अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए यह एक त्रासदी से कम नहीं था । अपने ही राजनैतिक दल द्वारा हुए इस धोखे से डॉ. कार्तिक उरांव जी को गहरा आघात लगा । अपने द्वारा लिखी गई बहु चर्चित पुस्तक  “बीस वर्ष की काली रात” में उन्होंने पूरे लोकसभा के प्रकरण का मार्मिक वर्णन किया है ।   

        

  अनुसूचित जनजातियों के मसीहा :-

स्व. कार्तिक उरांव जी  एक दूरदर्शी, कुशल राजनेता और उच्च कोटि के प्रशासक थे । उन्होंने अपने जीवन काल में कई उल्लेखनीय और प्रसंशनीय कार्य किया । 60 के दशक में भूदान आंदोलन का विरोध करते हुए उन्होंने यह कहा, “अनुसूचित जनजाति के सदस्य  के जीवन का अस्तित्व का आधार उसकी जमीन है, जमीन नहीं रहेगी तो अनुसूचित जनजाति भी नहीं बचेगा” उनके इस प्रयास से अनुसूचित जनजातियों की जमीन दान में जाने से बची और वापस भी हुई । उनके इस कृति से समाज उन्हें मसीहा मानने लगा । कृषि विकास के क्षेत्र में आपका योगदान महत्वपूर्ण रहा है । 70 के दशक में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना करवाने में डॉ कार्तिक बाबू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । जनजातीय समाज के विकास हेतु ट्राइबल सबप्लान की कल्पना भी आपके दिमाग की ही उपज थी । 

उनका एक और सपना था तत्कालीन बिहार, उड़ीसा और मध्यप्रदेश राज्यों से जुड़ती हुई सीमा पर एक विश्व विद्यालय स्थापित हो जिसमें हर तरह के प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई हो, जहां कुछ प्रतिशत सीट गैर जनजातीय छात्रों के लिए भी रहे। इस विश्वविद्यालय से निकलने वाला हर बच्चा भारतीय होने का गौरव महसूस करे । डॉ. कार्तिक उरांव जी के असामयिक निधन के कारण उनका यह सपना अधूरा रह गया।

संकल्प :-

उनके आकस्मिक मृत्यु से भले ही एक युग का अंत हुआ हो, मगर, उनका चिंतन, विचारधारा और अधूरे सपनों को लेकर आज लाखों लोग अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिए आंदोलन में जूटे हैं । “जनजाति सुरक्षा मंच” द्वारा चल रहे राष्ट्र व्यापी डी-लिस्टिंग आंदोलन के प्रेरणास्रोत स्व. कार्तिक उरांव जी ही है । यह आंदोलन सम्पूर्ण भारत में बहुत बड़ा जनाधार प्राप्त करने में सफल हुआ है । अपने निरंतर संघर्ष पूर्ण जीवन यात्रा को सिर्फ 57 वें साल में ही पूर्णविराम लगाने वाले पंखराज साहेब की जीवन गाथा का प्रत्येक अध्याय भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा पुंज का काम करता रहेगा ।

डॉ. कार्तिक उरांव जी की 99वीं जयंती 29 अक्टूबर को है । इस जयंती से उनकी जन्म शताब्दी वर्ष का भी शुभारंभ होगा । हमें संकल्प लेना है कि डॉ. कार्तिक उरांव जी के अधूरे सपनों को इस जन्म शताब्दी वर्ष में हम अथक परिश्रम करते हुए पूर्ण करेंगे। उनके संदेशों को गाँव-गाँव में, गली-गली में पहुँचाने के लिए इस शताब्दी वर्ष में यदि हम यत्न करेंगे तो यहीं उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

Onima Shyam Patel

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