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बांग्लादेश में हर जगह भीड़ का तांडव, बंग बंधु की प्रतिमा को भी नहीं छोड़ा, ये सीन देख रोया होगा हसीना का दिल

बांग्लादेश में हर जगह भीड़ का तांडव, बंग बंधु की प्रतिमा को भी नहीं छोड़ा, ये सीन देख रोया होगा हसीना का दिलबांग्लादेश में बीते कुछ दिन में सियासी घटनाक्रम तेजी से बदला है. आरक्षण विरोधी प्रदर्शन अब सरकार विरोधी आंदोलन में तब्दील हो चुका है. बांग्लादेश में सोमवार को हिंसा के बीच शेख हसीना ने इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया. इसके बाद प्रदर्शनकारियों का हंगामा तेज हो गया है. सोमवार को भीड़ ने जगह-जगह आगजनी की. शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग के दफ्तर में आग लगा दिया. गृहमंत्री असदुज़मन खान के घर को भी आग के हवाले कर दिया गया. प्रदर्शनकारी पीएम हाउस भी घुस आए और हुड़दंग मचाया.भीड़ ने बांग्लादेश के जनक और शेख हसीना के पिता बंग बंधु शेख मुजीर्बरहमान की प्रतिमा को भी नहीं बख्शा. प्रदर्शनकारी बंग बंधु की प्रतिमा पर चढ़ गए और इसे हथौड़े से इसे जगह-जगह तोड़ दिया. वायरल हो रहे फुटेज मे प्रदर्शनकारियों को शेख मुजीर्बरहमान की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाते देखा जा सकता है.शेख मुजीर्बरहमान को बांग्लादेश का जनक माना जाता है. उन्होंने ही पाकिस्तान के खिलाफ आजादी की लड़ाई शुरू की थी. उन्हें बंग बंधु (बंगाल का दोस्त) भी कहा जाता हैं, क्योंकि उनके नेतृत्व में ही बांग्लादेश की स्थापना का रास्ता साफ किया था. बांग्लादेश की आजादी के बाद शेख मुजीर्बरहमान देश के पहले राष्ट्रपति बने थे. बाद में उन्होंने पीएम का पद भी संभाला. शेख मुजीर्बरहमान का जन्म 17 मार्च 1920 को गोपालगंज के तुंगीपारा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम शेख लुत्फुर और मां का नाम शेख सायरा खातुन मुजीब था. शेख मुजीर्बरहमान कुल छह भाई-बहन थे. बांग्लादेश जब आजाद हुआ था, तो तीन साल बाद सेना तख्ता पलट के दौरान उनकी और उनके परिवार के लोगों की हत्या कर दी गई थी.इंदिरा गांधी के साथ थी अच्छी दोस्ती1971 में पाकिस्तान से आजाद होने के बाद शेख मुजीर्बरहमान की लीडरशिप में बांग्लादेश तेजी से आगे बढ़ रहा था. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनकी अच्छी दोस्ती थी. उस समय शेख मुजीर्बरहमान ने राष्ट्रीयकरण पर खासा जोर दिया. राष्ट्रपति होने के नाते उनका सबसे ज्यादा फोकस केंद्रीय राजनीति पर रहा. 15 अगस्त 1975 को परिवार समेत हुई हत्याधीरे-धीरे शेख मुजीर्बरहमान के खिलाफ जनता का आक्रोश बढ़ने लगा. करीब चार साल बाद शेख मुजीर्बरहमान के खिलाफ अलग-अलग धड़ों में गुस्सा पनपने लगा. इसमें सेना के कुछ अधिकारी भी शामिल थे. 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेश सेना के कुछ जूनियर अधिकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर टैंक लेकर हमला कर दिया. इस हमले में शेख मुजीर्बरहमान समेत उनका परिवार और स्टाफ मारे गए. इसलिए बची शेख हसीना और शेख रेहाना की जानइस समय शेख मुजीर्बरहमान की दो बेटियां शेख हसीना और शेख रेहाना जर्मनी ट्रिप पर थीं. इसलिए उन दोनों की जान बच गई. शेख मुजीर्बरहमान की मौत के बाद बांग्लादेश में दो साल तक हिंसा का दौर चला. फिर हालात कुछ सामान्य हुए. अपने पिता की खोई हुई विरासत को वापस लेने के लिए शेख हसीना ने लंबी राजनीतिक लड़ाई लड़ी. 1996 में शेख हसीना पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री चुनी गईं. 

शेख मुजीर्बरहमान को बांग्लादेश का जनक माना जाता है. उन्होंने ही पाकिस्तान के खिलाफ आजादी की लड़ाई शुरू की थी. उन्हें बंग बंधु (बंगाल का दोस्त) भी कहा जाता हैं, क्योंकि उनके नेतृत्व में ही बांग्लादेश की स्थापना का रास्ता साफ किया था.
Bol CG Desk (L.S.)

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