same-sex marriage : समलैंगिक विवाह का बार काउंसिल ने किया विरोध, कहा- देश के 99.9 प्रतिशत लोग खिलाफ में, सुप्रीम कोर्ट मामला संसद पर छोड़े


नई दिल्ली। same-sex marriage समलैंगिक जोड़ों के विवाह के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। यह सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ कर रही है। इसी बीच समलैंगिक विवाह के विरोध में बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल सामने आया है। इस मसले पर बार काउंसिल ने अपना पक्ष रखा है, देश की भावनाओं से कोर्ट को अवगत कराया है। बता दें कि केंद्र सरकार ने भी इस मामले में विरोध जता चुकी है।
same-sex marriage समलैंगिक विवाह को हम मान्यता नहीं दे सकते
same-sex marriage बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने मीडिया से कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सभी प्रतिनिधियों का मानना था कि भारत जैसे देश में समलैंगिक विवाह को हम मान्यता नहीं दे सकते। इससे हमारे देश की मूलभूत संरचना पर बुरा असर पड़ेगा। हम सुप्रीम कोर्ट में IA (अंतर्वर्ती आवेदन) फाइल करेंगे और इसका विरोध करेंगे।


स मुद्दे को संसद पर छोड़ देना चाहिए
same-sex marriage बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिलों ने रविवार को समलैंगिक जोड़ों के विवाह के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले का विरोध किया है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा कि देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को देखते हुए इस मुद्दे को संसद पर छोड़ देना चाहिए।
अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में बीसीआई और राज्य बार काउंसिलों की एक संयुक्त बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया। जिसमें कहा गया कि भारत सामाजिक-धार्मिक रूप से सबसे विविध देशों में से एक है। ‘कोई भी ऐसा मामला जिससे मौलिक सामाजिक संरचना के साथ छेड़छाड़ की संभावना है, ऐसा मामला जो हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है, उसे अनिवार्य रूप से केवल विधायी प्रक्रिया के माध्यम से आना चाहिए।’
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आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत नुकसानदायक
same-sex marriage एक रिपोर्ट के मुताबिक बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रस्ताव में कहा गया कि इस तरह के संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला हमारे देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो सकता है। प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है। समाज के विभिन्न वर्गों ने इस पर टिप्पणी की है और इसकी आलोचना की गई है… इसके अलावा, यह सामाजिक और नैतिक रूप से संवेदनशील है।’
सुप्रीम कोर्ट से इस मुद्दे को संसद के विचार के लिए छोड़ने का अनुरोध करते हुए बार काउंसिल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस पूरे मामले को संसद पर छोड़ देना चाहिए।
अति संवेदनशील मुद्दे पर चिंता व्यक्त की
बार काउंसिल ने कहा कि ‘हमारे देश के 99.9% से अधिक लोग समान-लिंग विवाह के विचार का विरोध करते हैं। विशाल बहुमत का मानना है कि इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला हमारे देश की संस्कृति और सामाजिक-धार्मिक ढांचे के खिलाफ माना जाएगा। बार आम लोगों का मुखपत्र है और इसलिए यह बैठक इस अति संवेदनशील मुद्दे पर उनकी चिंता व्यक्त कर रही है। संयुक्त बैठक का साफ मत है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई लापरवाही दिखाई तो यह आने वाले दिनों में हमारे देश के सामाजिक ढांचे को अस्थिर कर देगा।’
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