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Namaskar:- साइंस और मनोविज्ञान ने माना भारतीय अभिवादन चमत्कारिक,अनेकों लाभ

भारतीय परंपराओं में Namaskar का विशेष महत्व है। भारतीय जन जीवन में इस परंपरा की शुरुआत वर्षों पूर्व ऋषि आश्रम ओ से प्रारंभ हुई। ऋषि, साधु व संतों ने अपने आश्रमों में शिष्य परंपरा के अंतर्गत अभिवादन Namaskar संस्कार वृत्ति को महत्त्व प्रदान की। गुरु चरणों में बैठकर शिष्य विद्या ग्रहण करता था। Namaskar की संस्कृति हमारे देश की अनुपम धरोहर है।
एक दूसरे के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की परंपरा के रूप में अभिवादन का प्रयोग होता है।

Different ways in which people greet Namaskar each other:


वर्तमान में अभिवादन की जितनी भी रतियां प्रचलित है। उनमें सार्वजनिक वैज्ञानिक और मनोविज्ञान पर आधारित भारतीय पद्धतियों को मान्य किया गया है। साष्टांग प्रणाम चरण स्पर्श नमस्कार हाथ जोड़ना गले मिलना अभिवादन के प्रमुख स्वरूप हैं। अभिवादन की शारीरिक प्रतिक्रियाओं के साथ ही अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए संबोधन करना विशेष रूप से आत्मीयता का परिचायक है।

Namaskar


अभिवादन से एक दूसरे के मनोभावों से सौहार्द, स्नेहा तथा आत्मा के भाव का विकास होता है। जो सामाजिक जीवन को भी समर्थ बनाने में प्रभावपूर्ण होता है। हमारे पौराणिक ग्रंथों तथा वेदों में भी अभिवादन परंपरा का विशेष उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार परस्पर आत्मीयता के साथ कल्याणकारी मनोभाव पैदा होते है। हार्दिक स्नेह तथा निकटता के भाव मन में आते हैं।

Namaskar धर्म ग्रंथों में

Namaskar के संबंध में मनुस्मृति में लिखा गया है कि अभिवादन करने अर्थात आयु तथा अवस्था में बड़े लोगों का जो नित्य अभिवादन करते हैं उनकी आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है। जो मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुकूल है। अभिवादन प्रक्रिया में चरण स्पर्श को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे वैदिक परंपराओं के अनुसार इस अवस्था को विशेष मान्यता प्रदान की गई है। मनुस्मृति में उल्लेख है कि वेद के स्वाध्याय के प्रारंभ और अंत में सदैव गुरु के दोनों चरणों का स्पर्श करना चाहिए। बाएं हाथ से बाया पैर और दाएं हाथ से हराया पर स्पर्श करना चमत्कारिक होता है।

namaskar

चरण स्पर्श का मनोविज्ञान विशेष कोटि का है। जब सामने वाला व्यक्ति स्वयं से श्रेष्ठ व्यक्ति का चरण स्पर्श करता है तो दूसरा व्यक्ति चरण स्पर्श करने वाले के सिर पर आशीर्वाद स्वरुप हाथ रखता है। इस दौरान दोनों की समान उर्जायें परस्पर टकराती है। जब दोनों की ऊर्जा का मिलन होता है। तब श्रेष्ठ ऊर्जा वाले की ऊर्जा अपने कम श्रेष्ठ वाले व्यक्ति में प्रवाहित होने लगती है। इस दृष्टि से चरण स्पर्श की परंपरा सर्वाधिक प्रभावशाली मानी जाती गई है।

वीडियो देखें https://www.youtube.com/watch?v=NXxLJF52Rhc

अभीवादन की प्रस्तुति से एक अपरिचित व्यक्ति भी आत्मीय भाव के साथ होकर उसका अभिन्न हिस्सा बन जाता है। अभिवादन प्रक्रिया में विनीत भाव प्रमुख है। एक दूसरे के प्रति विनम्रता का भाव अनिवार्य होता है। महाकवि कालिदास ने विनायक को राजा से लेकर रंक तक का सबसे बड़ा आभूषण बताया है, जो नमस्कार से ही सुलभ होता है।

नमस्कार का मुख्य उद्देश्य है जिन्हें हम नमन करते हैं उनसे हमें आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक लाभ उपलब्ध हो अभिवादन द्वारा विनम्रता में वृद्धि होती है तथा आकार समाप्त होता है। कृषक के भाव के साथ सात्विकता प्राप्त होती है। मंदिर में चढ़ते समय चिड़ियों को भी नमन करते हैं। मन व बुद्धि सहित ईश्वर की शरण जाना साष्टांग नमस्कार होता है। बड़ों को नमन करने से उनमें विद्यमान देवत्व की अनुभूति होती है।

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Onima Shyam Patel

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