एक देश, एक चुनाव Explainer: 5 साल से पहले गिरी सरकार तो क्या होगा? सारे जवाब
एक देश, एक चुनाव Explainer: 5 साल से पहले गिरी सरकार तो क्या होगा? सारे जवाब क्या आप आए दिन होने वाले चुनावों से थक गए हैं? नवंबर में ही झारखंड, महाराष्ट्र के चुनाव हुए और अब जनवरी या फरवरी में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं. इसी साल 2024 की बात करें तो आम चुनाव के अलावा आठ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हो चुके हैं. इस बीच तमाम उप चुनाव और राज्यों में स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव भी होते रहे. कई बार सरकार की मशीनरी इसी चुनाव प्रक्रिया में व्यस्त रहती है. आए दिन चुनाव आचार संहिता लगने से सरकार की कई ज़रूरी योजनाएं, आपके कई ज़रूरी काम अटक जाते हैं. इन सबका हल क्या है? मोदी सरकार एक देश, एक चुनाव को इसका हल बता रही है. यानी लोकसभाओं और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना, लेकिन इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा. मंगलवार को लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश हो गया. जैसी की उम्मीद थी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी समेत सभी सांसदों ने इसका पुरजोर विरोध किया. बिल को फिलहाल व्यापक विचार विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी को सौंप दिया गया है. जेपीसी से निकलने बाद बिल संसद में आएगा और फिर इस पर बहस होगी. एक देश, एक चुनाव से जुड़ी बारीक बातों को जरा आसान भाषा में समझिए… विधेयक कैसे तैयार हुआमोदी सरकार ने एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी की सिफ़ारिशों के आधार पर संशोधन विधेयक तैयार किया. 2 सितंबर, 2023 को बनी रामनाथ कोविंद कमेटी ने 191 दिन तक तमाम राजनीतिक दलों, चुनाव और संविधान से जुड़े विशेषज्ञों, कारोबार और समाज से जुड़े संगठनों से व्यापक विचार विमर्श के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की. इसके लिए 65 बैठकें की गईं. इस सबके आधार पर 21 वॉल्यूम में 15 चैप्टरों की 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई जो इस साल 14 मार्च को राष्ट्रपति को सौंपी गई. क़रीब तीन महीने पहले मोदी कैबिनेट ने इस उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को स्वीकार किया और उसी के आधार पर संविधान संशोधन विधेयक तैयार किया. मोदी कैबिनेट से मंज़ूरी के बाद इसे संसद में रखा गया. विपक्ष तैयार नहीं”ये बिल संघीय ढांचे पर खतरा”: धर्मेंद्र यादवविरोध में तर्क क्या1-सबसे पहला तर्क तो ये है कि ये संघवाद की भावना के ख़िलाफ़ है और संविधान के ढांचे से छेड़छाड़ है. जिसमें राज्यों के साथ भेदभाव गहरा होगा.2- कुछ संवैधानिक संशोधन राज्यों की इजाज़त के बिना करना संघवाद के सिद्धांत का उल्लंघन होगा. 3- सरकार द्वारा तय कमेटी अगर चुनाव की प्रक्रिया में मूलभूत बदलावों का फ़ैसला करेगी तो ये चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के अधिकार के साथ छेड़छाड़ होगी जिस पर स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी है. 4- संविधान के मूल ढांचे से छेड़छाड़ का भी आरोप लग रहा है क्योंकि संविधान के कुछ पहलुओं को संवैधानिक संशोधनों से भी बदला नहीं जा सकता5- unexpired periods यानी असमाप्त अवधि के लिए चुनाव कराने को बराबरी के अधिकार के तहत चुनौती दी जा सकती है क्योंकि इससे अलग अलग समय के लिए चुनी हुई सरकारें बन जाएंगी.One Nation One Election Bill