KCR के नेताओं में भगदड़; कांग्रेस और BJP में हो रहे शामिल, कइयों को मिला लोकसभा का टिकट
KCR के नेताओं में भगदड़; कांग्रेस और BJP में हो रहे शामिल, कइयों को मिला लोकसभा का टिकटतेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (KCR) की भारत राष्ट्र समिति में पिछले साल के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से लोगों का पलायन देखा जा रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले 10 से अधिक वरिष्ठ नेताओं ने पाला बदल लिया है.भाजपा की सूची में 10 से अधिक नाम बीआरएस के पूर्व सदस्यों के हैं. इनमें बीआरएस के पूर्व मंत्री एटाला राजेंदर भी शामिल हैं. वह मल्काजगिरी से उम्मीदवार हैं. बीआरएस से निकाले जाने के बाद जून 2021 में वह भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन उनके आते ही कई अन्य लोगों ने पाला बदल लिया और कुछ ही घंटों में उन्हें भाजपा द्वारा नामांकित कर दिया गया.जहीराबाद के मौजूदा सांसद बीआरएस से थे. उन्होंने पद छोड़ दिया और कुछ ही घंटों में भाजपा के उम्मीदवार बन गए. बीआरएस सांसद रामुलु के बेटे भरत को नगरकुर्नूल से मैदान में उतारा गया. पिता और पुत्र के दल बदलने के कुछ ही घंटों के भीतर, इसी तरह अरूरी रमेश को वारंगल से बीजेपी उम्मीदवार बनाया गया.कांग्रेस इसी तरह से बीआरएस नेताओं का स्वागत करती रही है. चेवेल्ला सांसद रंजीत रेड्डी, जो बीआरएस उम्मीदवार के रूप में जीते थे, अब उसी सीट से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. 30 नवंबर के चुनाव में खैरताबाद से बीआरएस विधायक के रूप में जीत हासिल करने वाले दानम नागेंद्र को कांग्रेस ने सिकंदराबाद से मैदान में उतारा है. पूर्व बीआरएस मंत्री पटनम महेंद्र रेड्डी की पत्नी सुनीता महेंद्र रेड्डी बीआरएस के साथ विकाराबाद जिला परिषद की अध्यक्ष थीं. अब कांग्रेस की मल्काजगिरी उम्मीदवार हैं.कादियम काव्या को बीआरएस ने वारंगल से टिकट दिया था. वे कांग्रेस में चले गए हैं और उन्हें उसी सीट से मैदान में उतारा गया है. उनके पिता कादियाम श्रीहरि भी 30 नवंबर के विधानसभा चुनाव में बीआरएस विधायक चुने गए थे.बीआरएस के दो अन्य प्रमुख नेता पेद्दापल्ली सांसद वेंकटेश नेथा कांग्रेस में चले गए लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया. वारंगल के सांसद पसुनुरी दयाकर भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया है.2019 में, राज्य की 17 लोकसभा सीटों में से नौ केसीआर की पार्टी, चार भाजपा, तीन कांग्रेस और एक असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के खाते में गई थी. उस समय, केसीआर की पार्टी का दबदबा था. उन्हें तेलंगाना आंदोलन के जनक का दर्जा दिया गया था. पार्टी का पतन इसके नाम बदलने के बाद शुरू हुआ. राज्य के मुद्दों को छोड़कर नेता का राष्ट्रीय आकांक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करना मतदाताओं को पसंद नहीं आया. इस बात को पार्टी में कई लोगों ने निजी तौर पर स्वीकार किया था. दिल्ली शराब घोटाले में केसीआर की बेटी के कविता की कथित संलिप्तता सहित भ्रष्टाचार के आरोप से भी उन्हें नुकसान हुआ.