स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंध के अवसर पर मंत्री केदार कश्यप का शुभकामना संदेश
Quick Feed

UCC पर क्या था डॉ. भीमराव अंबेडकर का मत और क्यों लग रहा है इसे लागू करने में इतना लंबा वक्त?

स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंध के अवसर पर मंत्री केदार कश्यप का शुभकामना संदेश

UCC पर क्या था डॉ. भीमराव अंबेडकर का मत और क्यों लग रहा है इसे लागू करने में इतना लंबा वक्त?भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपना घोषणा पत्र रविवार को जारी कर दिया. इसमें समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को भी स्थान दिया गया है. अब इस पर बहस तेज हो गई है. लोग संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के समय से लेकर अब तक इस विषय पर देश में राजनीति कैसी रही है, इस पर चर्चा करने लगे हैं. संकल्प पत्र ‘मोदी की गारंटी’ नाम से भाजपा का घोषणा पत्र जारी करते हुए पीएम मोदी ने यूसीसी का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि भाजपा इसे बेहद महत्वपूर्ण मानती है. इससे पहले भी वह कई मंचों से कह चुके हैं की यूसीसी देश की जरूरत है. एक घर में जब दो नियम नहीं चल सकते तो देश में दो नियम कैसे लागू हो सकते हैं.यूसीसी को लेकर बहस नई नहीं है. वर्ष 1835 में सबूतों, अपराधों सहित कई अन्य विषयों पर यूसीसी लागू करने की बात कही गई थी, लेकिन उस रिपोर्ट में कहीं भी हिंदू या मुस्लिमों के धार्मिक कानून को बदलने को लेकर कोई बात नहीं थी. इसके बाद देश की आजादी के बाद जब 1948 में संविधान सभा की बैठक चल रही थी तो डॉ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने यूसीसी को भविष्य के लिए जरूरी बताते हुए इसे स्वैच्छिक रखने की बात कही थी. वह इस कानून के प्रस्तावक थे और इसमें कई राजनीतिक दिग्गजों का उनको समर्थन मिला था.हालांकि इस पर एक बार फिर बहस देश में तब छिड़ी जब तीन तलाक के एक मामले में अदालत के फैसले को संसद में बदला गया. चर्चित शाह बानो मामले में फैसला सुनाते हुए तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में अब यूसीसी की जरूरत महसूस हो रही है.भाजपा के अस्तित्व में आने से बहुत पहले 1967 के आम चुनाव में जनसंघ के मैनिफेस्टो में यूसीसी के मुद्दे को शामिल किया गया था. तब जनसंघ ने वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो ‘सामान नागरिक संहिता’ को देशभर में लागू किया जाएगा. सन् 1980 में जनसंघ से भाजपा बनी तो यूसीसी की मांग नए सिरे से उठने लगी.भाजपा के आज जारी संकल्प पत्र में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-44 में यूसीसी को नीति के निर्देशक सिद्धांतों के रूप में वर्णित किया गया है. ऐसे में “भाजपा यह मानती है कि जब तक इसे देश में लागू नहीं किया जाता है तब तक महिलाओं को समान अधिकार मिलना संभव नहीं है. भाजपा देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है जिससे परंपराओं को आधुनिक समय की जरूरतों के हिसाब से ढाला जाए.”मतलब साफ है कि संविधान में वर्णित होने के बाद भी आज तक इसे लागू नहीं किया जा सका. भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर तो संविधान सभा की बहसों में यूसीसी को लागू करने के पक्ष में अपनी राय रखते रहे थे. लेकिन, तब नजीरुद्धीन अहमद सहति कई सदस्य इसके खिलाफ थे. डॉ. अंबेडकर मानते थे कि धार्मिक संहिता पूरी तरह से भेदभावपूर्ण प्रकृति के हैं और इसकी वजह से महिलाओं को बहुत कम या कोई अधिकार नहीं दिया गया है.बाबा साहेब ने तब यह तर्क भी दिया था कि समान नागरिक संहिता कुछ नया नहीं है. विवाह और उत्तराधिकार को छोड़ दें तो देश में तो पहले से ही यूसीसी मौजूद है. हालांकि वह यह भी मानते थे कि यूसीसी को वैकल्पिक होना चाहिए. संविधान सभा में तब बाबा साहेब ने यूसीसी की बहस पर यह कहकर विराम लगा दिया था कि यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है और इसे लागू करने के लिए राज्य तत्काल प्रभाव से बाध्य नहीं हैं. उन्हें जब उचित लगे तब इसे लागू कर सकते हैं. ऐसे में डॉ. अंबेडकर ने एक व्यवस्था की कि भविष्य में समुदायों के साथ सहमति के आधार पर ही इसे कानूनी रूप दिया जा सके.सुप्रीम कोर्ट और देश के अलग-अलग हाई कोर्ट ने समय-समय पर कई बार यूसीसी लागू करने की जरूरत पर जोर दिया है. जस्टिस बी.एस. चौहान की अगुआई में लॉ पैनल ने अगस्त 2018 में यूसीसी पर कंसल्टेशन पेपर जारी किया था. उन्होंने सरकार को भेजी अपनी सिफारिश में कहा था कि अभी पूरे देश में यूसीसी लागू करने के अनुकूल समय नहीं है.इसके बाद लॉ कमिशन के अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) ऋतुराज अवस्थी ने इस पर एक बार फिर लोगों से राय मांगी और इस बहस ने जोर पकड़ ली. उस पर पीएम मोदी के यूसीसी को देश की जरूरत बताने वाले बयान के बाद तो इसने राजनीतिक रंग लेना भी शुरू कर दियाइस सब के बीच उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया जिसने यूसीसी को अमली जामा पहनाया और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई. अब इस समान नागरिक संहिता उत्तराखंड कानून 2024 की नियमावली तैयार करने और इसे लागू कराने के लिए भी राज्य सरकार की तरफ से एक समिति का गठन किया गया है. ऐसे में अब यह देखना जरूरी होगा कि आखिर देश में लागू होने वाले यूसीसी का ड्राफ्ट कैसा होने वाला है या फिर देश का ‘समान नागरिक संहिता’ कानून उत्तराखंड की यूसीसी का प्रतिबिंब तो नहीं होगा?

भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर तो संविधान सभा की बहसों में यूसीसी को लागू करने के पक्ष में अपनी राय रखते रहे थे. लेकिन, तब नजीरुद्धीन अहमद सहति कई सदस्य इसके खिलाफ थे.
Bol CG Desk

Related Articles

Back to top button