

छत्तीसगढ़ में इन दिनों चुनावी माहौल है। सभी राजनीतिक पार्टिया लगभग अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। लेकिन जिन कॉंग्रेस के विधायकों कीं टिकटें कट रही हैं उनमें से ज़्यादातर या तो किसी निगम/ मण्डल/आयोग/ प्राधिकरण के सदस्य,उपाध्यक्ष या अध्यक्ष हैं ,इसका ये अर्थ है कि ये लोग सत्ताधारी दल के विधायक होने के साथ-साथ ऐसे पदाधिकारी थे जिससे क्षेत्र की जनता का सीधे तौर पर भला कर सकते थे।
लेकिन ये विधायक ढाई-ढाई साल की लड़ाई में मुख्यमंत्री के गुट के साथ मिलकर पाँच साल तक मलाई खाते रहे ,अपना घर भरते रहे ,महँगी महँगी गाड़ियों पर चलते रहे और विलासिता से परिपूर्ण जीवन जीते रहे ,यहाँ तक कि स्वयं मुख्यमंत्री ने भी कहा था कि सिर्फ़ दो विधायकों की रिपोर्ट अच्छी नहीं है फिर इतनी बड़ी संख्या में विधायकों की टिकटें क्यों काटी जा रही है। मुख्यमंत्री का हर विधानसभा क्षेत्र में भेंट-मुलाक़ात कार्यक्रम फ़्लॉप शो रहा है।
घोषणाओं के अनुरूप काम नहीं सिर्फ़ बयानबाजी और जनसम्पर्क प्रायोजित जनता और खबरों की प्रधानता रही। क्या कारण है कि मुख्यमंत्री अपनी सरकार और वर्तमान विधायकों के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने और एंटी इनकम्बेन्सी से बचने कि लिए विधायकों की टिकट बदल रहे हैं या फिर एक बार कलेक्टर्स के तबादलों की तरह ही ज़्यादा चढ़ावा देने वालों को टिकट दी जा रही है ।