छत्तीसगढ़ में खेती को बढ़ावा, फिर भी पांच साल में दलहन की पैदावार में एक लाख क्विंटल की भारी गिरावट…


प्रदेश में दलहन की पैदावार लगातार घट रही है। भोजन में प्रोटीन के सबसे बेहतर सोर्स माने जाने वाले अरहर की बात करें तो वर्ष 2017 से 2021 के बीच पांच सालों में ही इसकी पैदावार में 17 हजार 340 मिटरिक टन की कमी आई है। वहीं बने की पैदावार 390 270 मिटरिक टन से घटकर 2 लाख 77 हजार 400 मिटरक टन हो गया है। प्रदेश में करीब 7 लाख 19 हजार हेक्टेयर में की खेती होती है। झसमें से करीब 5 लाख 78 हजार हेक्टेयर में भी मेनट विकी फसल ली जाती है।
वहीं खरीफ में करीब 39 हजार हेक्टेयर में अरहर, मूंग, उड़द और दूसरे दलहनी फसलों की खेती होती है। वर्ष 2019 में करीब इतने ही रकबे में खेती से 6 लाख 71 हजार मिटरिक टन से दलहनों की पैदावार हुई थी। इसमें 3 लाख 85 हजार मिटरिक टन अकेले चने की श्रीख 28 हजार मिटरिक टन और 78 हजार मिटरिक टन अरहर की पैदावार हुई वर्ष 2021 की पैदावार पटकर सिर्फ 5 लाख मिटरिक टन तक पहुंच गया। चने की पैदावार 277 मिटरिक टन खि हजार मिटरक टन और अरहर की पैदावार 62 हजार मिटरिक टन तक सिमट गई।
यह है दलहनों की पैदावार घटने की वजह
दलहनों के सरकारी खरीदी की व्यवस्था नहीं। खुले बाजार में कृषि लागत के अनुरूप उपज का मूल्य नहीं मिल पाता।
दलहनों की खेती रबी में सबसे ज्यादा होती है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे फसल की ग्रोथ प्रभवित होती है।
दलहन के लिए ठंड का मौसम बेहतर होता है। खरीफ में धान की फसल में देरी से दलहनी फसलों के लिए ठंड समय कम मिलता है। इससे उत्पादन प्रभावित होता है।
वर्षा आधारित खेती के कारण फसल को पर्याप्त नमी नहीं मिलती। इससे फसल के ग्रोथ के साथ उत्पादन दोनों प्रभावित होता है।
मौसम में अचानक बदलावों के कारण अधिकतर समय नमी के साथ उमस भरी गर्मी का वातावरण रहता है। इससे कीट-व्याधि का खतरा बड़ा जाता है।
बेमौसम बारिश के मामले बड़े है। ठंड में बारिश से रबी की फसल तबाह हो जाती है। दलहन की अधिकतर पैदावार रबी में ही होता है।
दलहनों का सेवन इसलिए जरूरी
दाल का सेवन करने से शरीर को प्रोटीन मिलता है अच्छी सेहत के लिए प्रोटीन एक जरुरी पोषक तत्व है ।
दाल के सेवन से शरीर में आयरन की कमी पूरी होती है। इससे शरीर में लंबे समय तक बनी रहती है।
दाल में डाइट्री फाइबर पाए जाते हैं। इससे दाल आसानी से पच जाता है जिससे अपच अथवा पेट से जुड़ी दूसरी समस्याओं की आशंका नहीं रहती।
दाल में फोलेट और मैग्नीशियम होता है। इसे हार्ट के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है।
दाल बैंड कोलेस्ट्रॉल को कम करती है। जिससे हार्ट से जुडी बीमारियों का खतरा कम होता है।
यह करे तो सुधर सकते है हालात
परंपरागत खेती के बजाए आधुनिक तरीकों को अपनाकर खेती और फसल के बेहतर प्रबंधन से पैदावार बढ़ाई जा सकती है।
बढ़ते तापमान की समस्या से निपटने ज्यादा तापमान झेल सके ऐसी किस्मों को बढ़ावा दे तो स्थिति में सुधार होगा।
रबी में दलहनी फसलों खासकर चने के खेतों में ड्रेनेज सिस्टम जा सकता है. ताकि यहां से पानी देने के साथ बारिश में निकासी की भी व्यवस्था हो।
जैविक पद्धति से बीजों के उपचार व फसल के गोध और पैदावार बढ़ाने वाले उपायों को अपनाकर पैदावार बढ़ाया जा सकता है।
धने में इलियों की समस्या ज्यादा होती है. ऐसी स्थिति में तत्काल के उपाय किए जाने चाहिए। कीट व्याधि के नियंत्रण व प्रबंधन से सुधार की जरूरत
है।
अधिक से अधिक मात्रा में उतेरा के रूप में फसल को अपनाकर
एक्सपर्ट रिव्यू
वरिष्ट कृषि वैज्ञानिक डॉ विजय जैन ने बताया कि फसल के बेहतर प्रबंधन और अपनाकर काफी हद तक दलहनों पैदावार बढ़ाई जा सकती है। शासन स्तर पर लगातार इसके किए जा रहे हैं लेकिन को भी जागरूक होने की है। किसान को से फसलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। समद्ध खेती पारंपरिक तरीके में थोड़े के इस्तेमाल और मरियों पर नियंत्रण से पैदावार में बढ़ोतरी होगी।
प्रदेश में दलहन का उत्पादन (मिटरिक टन)
- फसल 2017 2018 2019 2020 2021
- अरहर 79530 106880 78000 71660 62190
- मुंग 11230 14120 12250 7670 5530
- उड़द 54530 60330 52560 56360 30390
- चना 390270 490760 385260 114330 277400
- मटर 20280 29040 14530 20060 17800
- तिवड़ा 16110 18720 128430 122720 108550